जल की व्यथा का मार्मिक चित्रण- डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष  व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफेसर एमपी सिंह ने अपने  चिंतन को व्यक्त करते हुए कहा कि -
पहले समय में भारतीय नागरिक टट्टी पेशाब के लिए बाहर जाया करते थे जहां पर गुबरैला नाम का जीव टट्टी पेशाब को खाद के रूप में परिवर्तित करके जमीन में मिला देता था
 पहले लोग नीम व बबूल की दातुन करके फेंक दिया करते थे जिससे किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलता था या राख और सरसों के तेल से दांत साफ किया करते थे जिससे किसी प्रकार की दातों में कोई बीमारी नहीं होती थी लेकिन आज केमिकल वाले कोलगेट से दांत साफ किए जा रहे हैं जिससे अनेकों प्रकार की दांतो संबंधी बीमारियां पैदा हो रही है और घर घर में दंत चिकित्सक पैदा हो गए हैं 
पहले मुल्तानी मिट्टी लगाकर बालों और शरीर की सफाई किया करते थे जिससे बाल काले व मजबूत रहते थे और त्वचा संबंधी कोई रोग नहीं होता था लेकिन आज विभिन्न केमिकल से युक्त साबुन और शैंपू से शरीर और बाल साफ किए जा रहे हैं जिससे अधिकतर लोग बाल व त्वचा संबंधी बीमारियां को भुगत रहे हैं
 पहले बर्तनों को राख से साफ किया जाता था जिससे बर्तन चमकते रहते थे और जल प्रदूषण भी नहीं होता था लेकिन आज केमिकल युक्त साबुन व डिटर्जेंट से बर्तन साफ किए जा रहे हैं जिस से पानी प्रदूषित हो रहा है और बर्तनों की चिकनाहट भी नहीं जाती है जिससे स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है 
डॉ एमपी सिंह ने कहा कि आज हम जितना अधिक धन कमा रहे हैं उतना ही हम बीमारियों के इलाज में लगा रहे हैं पहले धन कम कमाते थे लेकिन खेतों में काम करके व पशुओं तथा पालतू जीव जंतुओं की सेवा करके तंदुरुस्त रहते थे किसी डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ता था 100 साल से ज्यादा उम्र होती थी चैन की नींद आती थी एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होते थे एक दूसरे की मदद के लिए एक साथ खड़े रहते थे लेकिन आज यह सब कुछ खत्म हो गया है आज एकल परिवार हो गए हैं दिन रात कमा रहे हैं और शौक मौज में उड़ा रहे हैं किसी को किसी की परवाह नहीं है किसी को किसी रिश्ते की अहमियत का पता नहीं है सब अपने आप में मस्त है सब अपनी दुनिया में मस्त हैं वैल्यू एंड एथिक्स खत्म हो चुके हैं प्रकृति के बारे में किसी को कोई चिंता नहीं है 
अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं जल दोहन भूमि दोहन कर रहे हैं अनायास वनों को उजाड़ रहे जंगली जानवरों के घरों को उजाड़ रहे हैं भारी भरकम पुराने पेड़ों को काट रहे हैं जिसकी वजह से शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है अधिकतर लोग अस्थमा और सीओपीडी के शिकार हो चुके हैं शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है जहां पर लाखों रुपए देने के बाद भी रोगी को नहीं बचाया जा रहा है
 आजकल पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है पहले कुआं बाबरी पोखर नलकूपों नदियों झीलों तालाबों  का पानी पीकर सभी स्वस्थ रहते थे जल जनित बीमारियां नहीं हुआ करती थी लेकिन आजकल संक्रमित व प्रदूषित पानी ही पीने को मिल पा रहा है जिसकी वजह से अधिकतर नागरिक जल जनित बीमारियां से परेशान है 
पहले समय पर वर्षा हुआ करती थी और वर्षा के पानी का संग्रहण किया जाता था लेकिन आज जमीन का अधिकतर हिस्सा पक्का कर दिया गया है जिसकी वजह से वर्षा का पानी संग्रहित नहीं किया जा सकता और पानी का चारों तरफ अभाव हो गया है 
भौतिकवाद और चमक-दमक की जिंदगी गुजारने हेतु कच्ची पहाड़ों को काटकर सौंदर्य करण किया जा रहा है और पृथ्वी के अधिकतम हिस्से में कल कारखाने लगा दिए गए हैं औद्योगिक नगरी बना दी गई है और उनका केमिकल पृथ्वी में डाला जा रहा है जिसकी वजह से पृथ्वी माता भी बेचैन हो चुकी है 300 फुट तक भी पानी नहीं मिल पा रहा है उसके बाद जो पानी मिल रहा है वह भी पीने योग्य नहीं है वह खारा पानी है वह केमिकल युक्त पानी है जिसको पीने मात्र से मौत तक भी हो सकती है 
पृथ्वी माता भी चिल्ला कर कह रही है कि कलयुगी इंसान  ने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेरी छाती को छलनी कर दिया है खनन माफिया जल माफिया भू माफिया हथियार लेकर 24 घंटे आक्रमण कर रहे हैं ऐसी स्थिति में अपनी रक्षा कर पाना व धर्म की रक्षा कर पाना बहुत मुश्किल है इसीलिए अनेकों बार ऐसी आपदाएं आती है जिनका कहीं किसी के पास कोई समाधान नहीं होता है लेकिन फिर भी इंसान नहीं समझ पाता है फिर भी गलत से गलत कार्य करने में संलिप्त रहता है
 यदि ऐसा ही होता रहा तो भविष्य में प्राणी मात्र को पीने योग्य पानी नहीं मिल पाएगा जिसकी वजह से अधिकतर लोग छटपटा कर मर जाएंगे या पानी प्राप्ति के लिए एक दूसरे की जान ले लेंगे इसीलिए इस विषय पर चिंतन मंथन करना बहुत जरूरी है
 मैं इस प्रकार के लेख इसलिए लिखता हूं ताकि लोग समय रहते समझ सके और आने वाली पीढ़ी को समझाने योग्य बन सके अन्यथा घोर कलयुग के बारे में जो पहले महापुरुषों ने लिखा है वही सत्य व चरितार्थ होगा 
उक्त विचार मेरे अपने स्वतंत्र विचार हैं यदि पढ़कर आपको अच्छा लगता हो और दूसरों का भला करना चाहते हो जनहित में राष्ट्रहित में सोच रखते हो तो अवश्य लाइक और शेयर करना
 मैं भली-भांति जानता हूं की अच्छी बातों के पाठक कम होते हैं और अच्छी सोच पर कार्य करने वाले ना के बराबर होते हैं दोषारोपण करने वाले और दूसरों में कमी निकालने वाले व टांग खींचने वाले अत्यधिक होते हैं उन्हें अपने देश से कोई लेना देना नहीं होता सिर्फ यही सोचते हैं कि इस का जुलूस कैसे निकाला जाए इसको कैसे नीचा दिखाया जाए हमें यह सोच छोड़नी होगी और सभी ने मिलकर देश की एकता अखंडता और समृद्धि के लिए तथा देशवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए कार्य करना होगा

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