सदकर्म से सदमार्ग मिलता है डॉ एमपी सिंह
देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफेसर एमपी सिंह का कहना है कि इस संसार में पुण्य और पाप तथा अच्छाई और बुराई दोनों है यहां ना कोई वस्तु सुख देने वाली है और ना ही कोई वस्तु दुख देने वाली है जो आज इस जगत में अच्छा दिखाई दे रहा है वह कल बुरा दिखाई पड़ेगा और जो आज बुरा दिखाई दे रहा है वह कल अच्छा दिखाई पड़ेगा
अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ एमपी सिंह ने एक उदाहरण के माध्यम से समझाया है कि अग्नि किसी भी वस्तु को जलाकर राख कर देती है लेकिन बिना अग्नि के भोजन तैयार नहीं किया जा सकता है एक तरफ अग्नि दुखदाई है और दूसरी तरफ सुखदाई है अग्नि के अर्थ अनेकों प्रकार से समझे जा सकते हैं यह मानव के अंदर की गर्मी भी हो सकती है और बाहर की गर्मी भी
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि कीचड़ को कभी कीचड़ से नहीं धोया जा सकता है कीचड़ को साफ करने के लिए पानी की जरूरत होती है यहां पर कीचड़ यानी बुरा कर्म पानी यानी अच्छा कर्म
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि जलती हुई आग को बुझाने के लिए पानी की जरूरत होती है यानी जलती हुई आग अहंकार और पानी ज्ञान है ज्ञान के द्वारा ही अहम और बहन को खत्म किया जा सकता है
डॉक्टर एमपी सिंह का कहना है कि मनुष्य को सृष्टि का सरताज माना गया है लेकिन आज जब हम बहुत से मनुष्यों की व्रतियों और कृतित्व को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि वह भयानक पशुओं से भी बदतर है इस कलिकाल में मानव अपनी करतूतों को ना देख कर एवं अपनी मानवता और मर्यादाओं को भूलकर कालक्रम और ईश्वर को मिथ्या दोष देता है मानव में दानव अथवा देव होने की संभावनाएं निहित है और ईश्वर ने उसे कर्म करने की स्वतंत्रता दी है यदि वह चाहे तो अपने कर्मों द्वारा दानव बन सकता है और यदि चाहे तो अपनी शुभ कर्मों के द्वारा देव तुल्य भी बन सकता है दिशाहीन व्यक्ति अपराध और कुकृत्य को जन्म देता है नारकीय जीवन यापन करता है लेकिन ज्ञानी और पुरुषार्थी व्यक्ति आनंद मे जीवन जीता है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि चोरी जारी ,अश्लीलता, असभ्यता ,दुराचार, फरेब, मर्डर तथा अनैतिक कर्म कभी करने की कोशिश मत करना क्योंकि जैसा करते हैं वैसा ही भुगतते हैं जो गलत तरीकों से बनता है वह अति शीघ्र बिगड़ता भी है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि सूर्य से हम सभी को सीख लेनी चाहिए वह सभी को समान रूप से प्रकाश देता है भेदभाव नहीं करता है ठीक इसी प्रकार से तत्व ज्ञानी लोगों को सभी जगह अपना प्रकाश फैलाना चाहिए और समानता का व्यवहार करना चाहिए ऊंच-नीच और भेदभाव को छोड़कर मित्रता पूर्वक व्यवहार करना चाहिए
डॉ एमपी सिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि चंगेज खान भी एक मानव था लेकिन उसने मानवता को बर्बरता की चरम सीमा तक पहुंचा दिया महात्मा बुद्ध भी एक मानव थे लेकिन उन्होंने मानवता को देवतुल्य बना दिया मानव ऐसी स्थिति में है कि वह पतन या विकास दोनों दिसा में अपने जीवन को लगा सकता है पशु यदि चाहे भी तो अपनी स्थिति को बदल नहीं सकता क्योंकि वह प्रकृति के अधीन है लेकिन मानव अपनी स्थिति हर परिस्थिति को बदल सकता है ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिलते हैं जैसे बाबा भीमराव अंबेडकर, संत रविदास, संत कबीर दास ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम और रावण, श्री कृष्ण और कंस ,युधिष्ठिर और दुर्योधन आदि
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