आप बीती कहानी के माध्यम से दिया संदेश -डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह ने इस कहानी के माध्यम से सुंदर संदेश जनता को प्रेषित किया है कृपया बार बार पढ़कर अर्थ को समझने की कोशिश करें और अधिक से अधिक लाइक और शेयर करें 
एक बार एक बच्चा ने अपनी मां से कहानी सुनाने की प्रार्थना की
 मां ने कहा की- आप बीती सुनना चाहते हो या जग बीती 
 बच्चे ने कहा- मां मैं समझा नहीं 
 ठीक है- मैं आप बीती कहानी आपको सुनाती हूं 
उसने कहा कि मेरे माता-पिता बचपन में ही मर गए थे और मेरे से छोटा एक भाई था मैंने उस भाई की पढ़ाई लिखाई कराने हेतु मैंने बहुत संघर्ष किया 24 घंटे में से 18 - 20 घंटे मेहनत  करके उसको पढ़ा लिखा कर अफसर बना दिया और विवाह शादी भी कर दी
 एक दिन वह और उसकी पत्नी आपस में बात कर रहे थे कि यह कहीं जाती भी नहीं है मरती भी नहीं है हमारे लिए तो आफत ही बनी हुई है यह बात मैंने अपने कानों से सुन ली और मैंने घर छोड़ने का निश्चय कर लिया
 मैं वहां से बहाना लगाकर निकल पड़ी और एक रेल गाड़ी में बैठ गई 8-10 घंटे के बाद रेलगाड़ी जहां रुकी  मैं वहां पर उतर गई मुझे बहुत भूख और प्यास लगी हुई थी मैंने वहां की महिलाओं से पानी पीने की प्रार्थना की उन्होंने मुझे पानी पिलाया और मेरा परिचय जानने की कोशिश की
 तब मैंने कहा कि मुझे पता नहीं है कि मैं कहां से आई हूं और कहां मुझे जाना है मेरा इस संसार में कोई नहीं है तब वह अपने घर मुझे ले गई और अपने पास रख लिया मैं उनके घर का सारा कार्य करती हूं और वह मुझे दो वक्त का भोजन खिला देते 
एक दिन मैंने उनसे कहा कि मैं खाली रहती हूं इसलिए कोई गाय या भैंस मेरे लिए बांध दीजिए ताकि मैं उसकी सेवा करके आपको उसका दूध पिला सकूं उन्होंने ऐसा ही किया और उसकी विवाह शादी के लिए किसी अन्य आदमी से वार्तालाप किया उस आदमी ने उसके साथ शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वह उसके साथ रहने लगे एक दिन पशुओं की लड़ामनी बनाने के लिए मिट्टी खोद रही थी तो उसमें से चमकदार वस्तु निकली जो की अमूल्य थी उसके बारे में मैंने अपने घरवालों को बताया उन्होंने उसे बाजार में बेचा अधिकतम मूल्य मिलने से 15 एकड़ जमीन उन्होंने खरीद ली और हम मालामाल हो गए और जिंदगी राजा महाराजाओं जैसी हो गई 
उक्त कहानी का शीर्षक निकल कर आता है कि जिसके लिए हम अपनी पूरी जान कुर्बान कर देते हैं वह आदमी हमारी कीमत नहीं समझता है लेकिन विधाता की रचना कोई नहीं जानता है विधाता हमेशा सभी के साथ न्याय करता है
 दूसरी तरफ उसके भाई और भाभी बहुत बीमार रहने लगे बहुत गरीबी आ गई नौकरी छूट गई दर-दर की ठोकरें खाने लगे कहीं से कोई मदद की आस दिखाई नहीं पड़ रही थी तब उन्हें अपनी बहन याद आ रही थी और बहन की तलाश में इधर उधर निकल पड़े अंत में एक दिन मेरे भाई और भाभी भटकते हुए मेरे महल के दरवाजे पर आ गए हैं और नौकरी मांग रहे थे मैंने बाहर निकल कर देखा यह तो मेरे भाई और भाभी हैं मैंने उनको घर बुलाया भोजन कराया और पूरी तवज्जो देकर उनकी सेवा की
 इसका तात्पर्य है कि हमें अपना कर्म करना चाहिए किसी के द्वारा की गई कुर्बानी त्याग भलाई और मेहनत  को नहीं भूलना चाहिए किसी के भी किए हुए उपकार को मानना चाहिए 
यदि आप शक्तिमानऔर सामर्थ्यबान है तो कमजोर असहाय निर्धन व्यक्ति की यथा योग्य मदद करो उसका उपहास मत उड़ाओ
 डॉ एमपी सिंह इस कहानी को इसलिए प्रकाशित कर रहे हैं ताकि अधिकतर लोग इसको पढ़कर संवेदनशील हो सके और मानवीय धर्म को अपना सकें ताकि अच्छे समाज की परिकल्पना की जा सके

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