परमात्मा की कृपा अजब और गजब तथा निराली है -डॉ एमपी सिंह
अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह का कहना है कि परमात्मा की कृपा अजब और गजब है बड़ी ही निराली है किसी की समझ में नहीं आती है सभी समझने की बहुत कोशिश करते है लेकिन समझने में असमर्थ है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि मेल और फीमेल के स्पर्म से बच्चे का जन्म होता है लेकिन हड्डी उसमें कैसे बनती हैं कौन बनाता है अत्यंत सोचने का विषय है बताया जाता है कि पृथ्वी जल पर टिकी हुई है पृथ्वी का कितना वजन है पृथ्वी पर चलने वाले कितने भारी वाहन है पृथ्वी पर उगने वाली कितनी फसलें और पेड़ पौधे और कितनी बहुमंजिला इमारत बनी है इतना बजन पानी कैसे सहन करता है समझ से परे है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि किसी ना किसी बहाने से हर किसी को उठा लेते हैं जैसा प्रभु चाहते हैं वैसा ही होता है जीवन क्या है समझ नहीं आता है अच्छा हो जाता है तो लोग कहते हैं मैंने किया बुरा हो जाता है तो लोग कहते हैं उस को यही मंजूर था सच क्या है पता नहीं
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि आज भौतिकवाद की दुनिया में खून के रिश्ते पतले हो गए हैं बहन भाई के रिश्ते दूषित हो गए हैं बाप बेटी के रिश्ते दूषित हो गए आप पड़ोसियों का प्यार खत्म हो गया है अधिकतर लोग स्वार्थी हो गए हैं और बिना स्वार्थ के नमस्ते भी नहीं करते है ऐसा लगता है कि आज का मानव पृथ्वी पर जीव जंतुओं के भाग्य से भरण पोषण कर रहा है फिर भी अपनी पेट की भूख मिटाने के लिए उन्हीं को काटकर खा रहा है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि बहुत बड़े पहाड़ को काटने के बाद भी उसने से जीवित जीव निकलता है आखिर उसको चुगा कौन देता है अनेकों लोग आग की चपेट में आ जाते हैं लेकिन फिर भी बच जाते हैं ट्रेन एक्सीडेंट के बाद भी बन जाते हैं बिजली के पकड़ने के बाद भी बन जाते हैं और कोई घर के बाथरूम में गिरने के बाद ही मर जाता है जरा सा सिर दर्द होने पर भी मौत आ जाती है कई बार बड़ी से बड़ी बीमारियों में डॉक्टर बचा लेते हैं लेकिन कई बार छोटी से छोटी बीमारी में आदमी मर जाता है यह सब कुछ क्या है कुछ कह देते हैं कि इतनी ही जिंदगी लिखी थी इतने ही सांस है ऐसा ही होना था इसका भाग्य ही ऐसा था इसका भाग्य तो बहुत कमजोर है और यह बहुत भाग्यवान है जबकि भाग्य लिखने वाले भी परमपिता परमात्मा ही है फिर हम उसी का धन्यवाद क्यों नहीं करते कि हे प्रभु परमात्मा तुम्हारा शुक्रिया अच्छे और बुरे पल के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया यदि हम उसका शुकराना करते चलते हैं तो विषम जीवन भी सम बन जाता है यदि हम अहम और वहम में जीते हैं तो सम जीवन भी विषम हो जाता है इसलिए नेकी कर दरिया में डाल
डॉ एमपी सिंह का कितना है कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतु को प्यार करो प्रकृति के नजदीक रहो उसे जानो और पहचानो अपने कर्मों में सुधार करो मां बहनों की इज्जत करो माता पिता गुरु का सम्मान करो गीता का ज्ञान याद रखो क्या लेकर आए थे क्या लेकर जाना है कर्म ही प्रधान है क्यों व्यर्थ में चिंता करते हो किससे डरते हो कौन तुम्हें मार सकता है आत्मा ना पैदा होती है न मरती है जो हुआ वह अच्छा हुआ जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है जो होगा वह भी अच्छा ही होगा तुम भूत का पश्चाताप न करो भविष्य की चिंता ना करो वर्तमान चल रहा है
डॉ एमपी सिंह गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं कि तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो तुम क्या लाए थे जो तुमने खो दिया तुमने क्या पैदा किया था जो नाश हो गया ना तुम कुछ लेकर आए जो लिया यहीं से लिया जो दिया यहीं पर दिया जो लिया इसी भगवान से लिया जो दिया इसी को दिया खाली हाथ आए थे और खाली हाथ चले जो आज तुम्हारा है कल किसी और का था परसों किसी और का होगा तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हैं बस यही तुम्हारे दुखों का कारण है परिवर्तन संसार का नियम है जिसे तुम मृत्यु समझते हो वही तो जीवन है एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो मेरा तेरा छोटा बड़ा अपना पराया मन से मिटा दो विचार से हटा दो फिर सब तुम्हारा है तुम चाहते हो यह शरीर तुम्हारा है न तुम शरीर के हो यह अग्नि जल वायु पृथ्वी आकाश से बना है इसी में मिल जाएगा परंतु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो यही सबसे उत्तम है जो इसके सहारे को जानता है वह भय चिंता शोक से सर्वदा मुक्त है जो कुछ भी तू करता है उसे भगवान को अर्पण करता चल उसी में तू सदा जीवन मुक्त आनंद अनुभव करेगा लेखक समय-समय पर अपने आर्टिकल ओं के माध्यम से जन जागरूकता फैलाते रहते हैं और सही गलत का दूध भी कर आते रहते हैं
उक्त विचार लेखक के अपने स्वतंत्र विचार हैं यदि पढ़ने के बाद आपको अच्छे लगते हैं तो अन्य लोगों को लाभान्वित करने के लिए शेयर कर दो
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