त्यागी तपस्वी योगी निस्वार्थ अध्यात्म और निर्भय का नाम संत है -डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह का कहना है कि सिर्फ पीले और गेरुआ कलर के वस्त्र धारण करने से कोई संत नहीं हो जाता है संत उनको कहा जाता है जो सांसारिक मोह का त्याग कर देते हैं निस्वार्थ भाव से काम करते हैं और हमेशा निर्भय रहते हैं जैसे महान संत कबीर 

डॉ एमपी सिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार कबीर दास जी अपनी झोपड़ी में एक चटाई बिछा कर आराम कर रहे थे उसी समय उस देश के महान सम्राट जहांपनाह उनसे मिलने के लिए आते हैं तब कबीर दास जी कहते हैं कि आधे घंटे बाद आना अभी हम आराम कर रहे हैं इस बात पर राजा के सैनिक गुस्सा हो जाते हैं और अनाप-शनाप बोलना शुरू कर देते हैं तब कबीरदास जी कहते हैं कि अच्छा बुलाओ तब महान सम्राट कहते हैं कि हमने आपके दोहे बहुत सुने हैं आज आप से मिलने का सौभाग्य मिला है इसलिए हम आप का सम्मान करना चाहते हैं इतना कहते ही उनके सैनिक सजी हुई थाल में अशर्फी तथा मूल्यवान वस्तुएं लेकर आते हैं तब कबीर कहते हैं कि इनकी मुझे जरूरत नहीं है इस कूड़े करकट को कहीं और किसी को दे देना इससे मेरा आश्रम गंदा हो जाएगा ऐसे थे पहले महान  संत कबीर दास जी 

डॉ एमपी सिंह का कहना है कि संत वह नहीं है जो सांसारिक जीवन से भाग गया है संत वह है जो जानता है कि वह सांसारिक जीवन में उतर कर भी अन्य लोगों को हरा देगा और अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ साथ परमार्थ के कार्य करता रहेगा

 डॉ एमपी सिंह ने बताया कि संतों का कहना है यह संसार कागज की पुड़िया बूंद पड़े ले जाना है यानी इस संसार को कागज की पुड़िया बताया है और थोड़ा सा पानी पर जाने पर कागज खत्म हो जाता है संतो को  पद और धन की इच्छा नहीं होती है वह तो कहते हैं कि साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए लेकिन आजकल के संत कैसे हैं कोई बात आप से छिपी नहीं है 

डॉ एमपी सिंह का कहना है कि कुछ संत एक निश्चित समय के बाद उपदेशक बन जाते हैं और आने वाली पीढ़ी के लिए संदेश देते हैं ताकि वह अपना घर गृहस्थ  और सामाजिक जीवन आसानी से गुजार सकें इसलिए वह अपने विचारों को कलमबंद कर देते हैं और कहानी लेख भजन दोहा आदि के माध्यम से जन जन तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं

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