सुख दुख का कारण प्रतिस्पर्धा है - डॉ एमपी सिंह
अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह का कहना है कि सुख दुख का कारण प्रतिस्पर्धा होती है यदि प्रतिस्पर्धा में आदमी जीत जाए तो सुख महसूस होता है और यदि इंसान हार जाए तो दुख महसूस होता है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि प्रतिस्पर्धा बचपन से ही शुरू हो जाती है छोटा बच्चा जब खिलौने से खेलता है तो पड़ोस में खेलने वाले बच्चे के खिलौनों से प्रतिस्पर्धा की जाती है अन्य बच्चों के कपड़ों से प्रतिस्पर्धा की जाती है जब बच्चा स्कूल जाने लगता है तो अच्छे स्कूल में दाखिला कराने की प्रतिस्पर्धा होने लगती है खेलकूद अकादमी ज्वाइन कराने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है जब बच्चा और बड़ा होता है तो उसे इंजीनियर डॉक्टर बनाने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है कुछ आईएएस आईपीएस आईआरएस आईएफएस नेता अभिनेता वैज्ञानिक आदि बनाने की होड़ में लग जाते हैं
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि जब वे धन कमाने लग जाता है तो मकान दुकान फैक्ट्री बनाने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है फिर बच्चों की शादी की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है दान दहेज की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि उससे अगली उम्र में आते हैं तब बड़े बूढ़े बुजुर्गों की सेवा की स्पर्धा नहीं रहती है वह बोझ बन जाते हैं जिन्होंने औलाद की हर स्पर्धा में नंबर वन पर लाने के लिए सार्थक प्रयास किए थे आज उन्हीं को दरकिनार कर दिया जा रहा है जो कि आज सोचने का विषय है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि प्रतिस्पर्धा का खेल बड़ा खतरनाक है लेकिन अधिकतर लोग खेलते हैं और दूसरों को नीचा भी दिखाते हैं अपमानित भी करते हैं अच्छे कपड़े पहनने पर तथा बड़ी गाड़ी में चलने पर बड़ा इंसान समझते हैं और फटे पुराने गंदे कपड़े पहनने वालों को तथा पैदल चलने वालों को छोटा आदमी समझते हैं जबकि श्मशान घाट में जाने के बाद सब एक समान हो जाते हैं वहां ना कोई छोटा होता है और ना कोई बड़ा होता है ना कोई अमीर होता है ना कोई गरीब होता है इसलिए प्रतिस्पर्धा को छोड़ना चाहिए और सही तरीके से जीवन को जीना चाहिए इंसानियत के गुणों को अपनाना चाहिए
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