राजनीतिक लोग तथा पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी ही भय और भ्रष्टाचार के जन्मदाता है -डॉ एमपी सिंह
अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह का कहना है कि भय और भ्रष्टाचार के जन्मदाता अधिकतर राजनीतिक लोग और पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारी हैं
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि राजनीतिक लोगों पर बड़े राजनेताओं का हाथ होता है क्योंकि उन्हें खुद के अलावा उनके लिए भी कमाना पड़ता है टिकट खरीदने के लिए भी भारी भरकम रकम देनी पड़ती है चुनाव प्रक्रिया में भी अनाप-शनाप खर्चा होता है आए दिन कोई ना कोई रैली या प्रदर्शन करना होता है इसलिए खर्चा पूरा करने के लिए या तो उनको उगाई करनी पड़ती है या गलत धंधों में लिप्त होना पड़ता है कल्फ के कपड़े ऐसे ही नहीं पहने जाते हैं घर में परिवार के सभी सदस्यों के पास अनेकों वाहन होते हैं वह ऐसे ही नहीं चलते हैं किसी ना किसी बहाने से कोई ना कोई पार्टी बड़े-बड़े होटलों में होती रहती है वहां के बड़े-बड़े बिल आम आदमी नहीं चुका सकता है उक्त कार्यों को संपूर्ण करने के लिए गलत नीति और नियत को ही अपनाना पड़ता है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि अधिकतर शराबी अपराधी दबंग जल माफिया खनन माफिया भूमि माफिया तथा गलत प्रवृत्ति के लोग पुलिस के कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ बैठकर चाय पीते हैं जिससे उनका दबदबा समाज में बना रहता है यदि गली मोहल्ले में किसी प्रकार की कोई हिंसा आपसी लड़ाई झगड़ा या चोरी डकैती हो जाती है तो पुलिस शिकायत या सुलहनामें के लिए इन्हीं दबंगों के माध्यम से पुलिस को भारी भरकम रकम देनी पड़ती है क्योंकि आम आदमी को पुलिस से डर लगता है और यदि कोई हिम्मत करके पुलिस चौकी या थाने चला जाता है तो उसे प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है इसलिए सभी को अपने बचाव और सम्मानित जिंदगी के लिए कोई ना कोई माई बाप बनाना पड़ता है उक्त सभी लोग मजबूरी का फायदा उठाते हैं यहीं से भय और भ्रष्टाचार का जन्म होता है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले राजनेताओं की मेहरबानी से होते हैं और उनको काइंड और कैश में भारी भरकम कीमत चुकानी पड़ती है तथा उनके उल्टे सीधे कार्य भी करने पड़ते हैं उनकी फटीक भी करनी पड़ती है जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव आम जनता पर पड़ता है जब आम आदमी छोटे से कार्य के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते लगाते थक जाते है तब वह कहीं ना कहीं से सिफारिश लगबातें है जिस सिफारिश के लिए उन्हें आर्थिक सामाजिक मानसिक बोझ उठाना पड़ता है और प्रताड़ना को भी सहन करना पड़ता है लेकिन फिर भी काम नहीं होते
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि आम आदमी को सही काम के लिए भी कीमत चुकानी पड़ती है लेकिन राजनेताओं तथा गलत प्रवृत्ति के लोगों के कार्य घर बैठे ही हो जाते हैं वह सरकारी जमीनों पर भी कब्जा करते हैं पहाड़ों पर भी कर कब्जा करते हैं प्रकृति के साथ भी खिलवाड़ करते हैं बहन बेटियों की इस्मत से भी खेलते हैं प्रदूषण भी फैलाते हैं मारपीट व मर्डर भी करते हैं लेकिन फिर भी वह अच्छे होते हैं क्योंकि वह प्रशासनिक अधिकारी की मुंह मांगी रकम पहुंचा देते हैं इसी वजह से उनके लिए किसी सजा का प्रावधान नहीं है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि सरकारी अधिकारी से मिलने के लिए सुबह से शाम तक इंतजार करना पड़ता है यदि मुलाकात हो भी जाए तो खड़े-खड़े एक मिनट के अंदर ही उसको सांत्वना देकर बाहर कर दिया जाता है और उसी काम के लिए अनेकों दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं लेकिन अधिकारी बात करके भी राजी नहीं होते हैं सरकारी अधिकारियों से मिलना समझो भगवान से मिलने के बराबर है यदि मुलाकात भी जाए तो उनके पास वहानों की बहुत बड़ी लिस्ट होती है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि सरकारी अधिकारी और कर्मचारी आम आदमी से बहुत आसानी से काम ले लेते हैं लेकिन जब किसी आम आदमी का कोई छोटा सा भी कार्य पड़ता है तब सच्चाई का पता चलता है उसे अपने कार्य के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है निवेदन करना पड़ता है हाथ जोड़ने पड़ते हैं लेकिन कार्य जब तक नहीं होता है जब तक ठीक चैनल से पैसे उनके पास नहीं पहुंच जाते हैं
डॉ एमपी सिंह का कहना है यदि ऐसा ही चलता रहा तो आम आदमी का जीवन दूभर हो जाएगा और अधिकतर लोग भय और भ्रष्टाचार के शिकार हो जाएंगे इससे मुक्ति कैसे मिले इसके लिए किसी ईमानदार मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को सोचना होगा
उक्त विचार लेखक के अपने स्वतंत्र विचार हैं यदि आप सहमत हैं तो इस लेख को ज्यादा से ज्यादा फॉरवर्ड करें ताकि कहीं आशा की किरण नजर आ सके और समस्या समाधान का रास्ता सुगम हो सके मुझे लगता है कि उक्त समस्याओं से अधिकतर सभी लोग जूझ रहे हैं लेकिन कलम कोई नहीं उठाना चाहता है आपका ना लिखना और ना बोलना भी भय और भ्रष्टाचार को जन्म देता है
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