उम्मीद ही दुख का कारण होती है -डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह का कहना है कि उम्मीद करना व उम्मीद रखना ही सबसे बड़ा दुख का कारण होता है इस आर्टिकल को जनहित और राष्ट्रहित में प्रकाशित किया जा रहा है ताकि स्वार्थ बस लोग बीमारी के शिकार ना हो अधिक तनाव से बीपी और शुगर हो जाता है उतनी ही आशा और उम्मीद रखें जितनी से आपका काम चल सके

 डॉ एमपी सिंह ने बताया कि सभी माता पिता अपने बच्चे से बहुत सारी उम्मीद है रखते हैं इसीलिए वह अच्छे विद्यालय में पढ़ाते हैं अच्छे ट्यूटर लगाते हैं अच्छी परवरिश करते हैं अच्छा विवाह शादी करते हैं अच्छी नौकरी लगाने के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं लेकिन कई बार अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाते हैं जैसा वह सोचते हैं वैसा नहीं हो पाता है

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि अच्छे स्कूल में पढ़ाने के बाद जब वह बच्चा फेल हो जाता है तो माता-पिता को गुस्सा आता है और वह उस बच्चे को डांट फटकार लगा देते हैं जिससे वह बच्चा पीड़ित होकर गलत फैसले ले लेता है और वह माता-पिता के लिए दुख का कारण बन जाता है 

डॉ एमपी सिंह का कहना है कि कई बच्चे अपनी इच्छा से शादी कर लेते हैं जो माता पिता को अच्छा नहीं लगता है और वह भी कई बार उस बच्चे को छोड़कर चली जाती है कोर्ट कचहरी हो जाती है पुलिस थाने हो जाते हैं जो असहनीय होते हैं

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि सब लोग स्वार्थी हैं कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता है बहुत कम ऐसे लोग हैं जो निस्वार्थ रूप से मदद करते हैं इसीलिए चारों तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई देता है

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि कई बच्चे घर छोड़कर बाहर निकल जाते हैं और काम धंधा करना शुरू कर देते हैं वहां पर किसी लड़की के साथ अफेयर हो जाता है उसने उसे धोखा मिलता है फिर वह अपने मित्र के पास मदद के लिए जाता है लेकिन मित्र भी मदद नहीं करता है फिर वह किसी संत महात्मा के पास जाता है वहां पर उनके प्रवचन को सुनता है सुनने के बाद उसे आत्मज्ञान पैदा होता है फिर उसे अपने पराए तथा अच्छे बुरे का बोध होता है पहले उसे अपने माता पिता के द्वारा किए गए कार्य पर दुख होता है फिर उसे अपनी पत्नी के किए गए कार्य पर दुख होता है फिर उसे अपने मित्र के द्वारा किए गए कार्य पर दुख होता है बाद में उसे सही ज्ञान की अनुभूति होती है

 डॉ एमपी सिंह का कहना है की औलाद पेट में भी हाथ पैर मारती है बचपन में भी हाथ पैर मारते हुए बच्चे अच्छे लगते हैं और उनकी मार हर माता-पिता खाते भी हैं लेकिन बुढ़ापे में जब वह हाथ पैर मारते हैं तो सभी को बुरा लगता है लेकिन इससे कोई सीख लेना नहीं चाहता है कहने का भाव यह है कि हमें अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए लेकिन उम्मीद नहीं रखनी चाहिए

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि भौतिकवाद की दुनिया में कोई किसी की सुनकर और मानकर राजी नहीं है किसी को किसी की सलाह भी अच्छी नहीं लगती है इसीलिए अधिकतर कलह क्लेश और लड़ाई झगड़े हो रहे हैं और जब कोई किसी की नहीं मानता है या किसी की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तो उसकी आशा और उम्मीद पर पानी फिर जाता है जिसकी वजह से वह बहुत दुखी और परेशान रहता है और संसार नश्वर दिखाई पड़ता है 

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