इंसान पुजता है जरूरत के आधार पर- डॉ एमपी सिंह

लाइफ कोच व मोटिवेशनल स्पीकर डॉ एमपी सिंह का कहना है की भौतिकवाद की दुनिया में इंसान जरूरत के आधार पर पूछा जाता है और जरूरत के आधार पर ही  उसको तवज्जो दी जाती है जब किसी को जरूरत होती है तब वह उस इंसान को अच्छा सम्मान देता है घर में सोफा पर बिठाता है ऑफिस में कुर्सी पर बिठाता है चाय पानी पिलाता है इंतजार भी नहीं कराता है और अपना काम निकाल लेता है लेकिन जब उस व्यक्ति को उसकी जरूरत होती है तो वह फोन भी नहीं उठाता है बात भी नहीं करता है मिलता भी नहीं है 

डॉ एमपी सिंह का कहना है कि जब कोई भाई अपनी बहन के यहां पर फल मिठाई कपड़े इत्यादि लेकर जाता है तो बहन उसके लिए अच्छे-अच्छे व्यंजन बनाती है घी बुरा भी खिलाती है आगे पीछे भी घूमती रहती है और बड़ी हंस हंस कर बातें करती है लेकिन जब गरीब भाई खाली हाथ बहन के दरवाजे पर पहुंचता है तो बहन पानी की भी नहीं पूछती है सीधे मुंह से बातें भी नहीं करती है शरीर में दर्द बताने लगती है और जल्दी से जल्दी उसको अपने घर का रास्ता दिखा देती है

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि बड़े-बड़े महामंडलेश्वर तभी किसी को चाय का कार्यक्रम देते हैं जब उनके पास भारी भरकम रकम पहुंच जाती है या उनको उम्मीद होती है कि चरण वंदना करने में मनचाही दौलत मिल जाएगी गरीब आदमी के यहां पर कोई भी महात्मा संत महामंडलेश्वर नहीं जाते हैं 

डॉ एमपी सिंह का कहना है कि जब कहीं पर सत्संग हो रहा होता है तो उसमें कुछ लोग जमीन पर पीछे बैठने वाले होते हैं लेकिन कुछ लोग गुरुओं के साथ सिंहासन पर बैठने वाले होते हैं वह कौन से लोग होते हैं जिनको अपने से ऊपर भी सिंहासन पर बैठाया जाता है फूल मालाओं से स्वागत किया जाता है यह सबकी समझ में आता है

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि जब किसी से काम निकलवाना होता है तब उस बड़े अधिकारी व राजनेता के लिए बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है लाखों रुपए उसमें खर्च किए जाते हैं तब उससे प्रभावित होकर वह राजनेता और बड़े अधिकारी उसके काम को आंख बंद करके कर देते हैं लेकिन गरीब आदमी अपने सही काम करवाने के लिए भी दर-दर की ठोकरें खाता रहता है हार थक कर बैठ जाता है कहीं कोई उसकी सुनवाई नहीं करता है 

उक्त विचार डॉ एमपी सिंह के अपने स्वतंत्र विचार हैं बड़े चिंतन और मंथन करने के बाद इस आर्टिकल को लिखा गया है यदि आपको अच्छा लगे और मेरी बात से आप सहमत हो तो अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का कष्ट करें ताकि समाज की कुछ कुरीतियों तथा चलन मैं बदलाव लाया जा सके बदलाव लाने के लिए विद्वानों की जरूरत है यह वर्गीकरण पृथ्वी पर पहले से ही चला आ रहा है की पैसे वाले की जय जय कार होती है और विद्वानों को नहीं पूछा जाता है लेकिन आज कुछ विद्वान अपनी विद्वता को प्रोफेशनल होकर बेच रहे हैं और धन कमाने की लाइन में अग्रणीय हो चुके हैं

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