पहले के जमाने में बड़ी नौकरी नहीं थी लेकिन सभी प्रकार के सुख थे -डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह ने अपने वास्तविक जीवन के आधार पर पहले के समय  का वर्णन करते हुए इस आर्टिकल को प्रकाशित किया है

 डॉ एमपी सिंह का कहना है कि मैं गरीब घर में  पैदा हुआ जब मैं 2 वर्ष का था तभी पिता जी का देहावसान हो गया घर में कमाने वाला कोई नहीं था लेकिन मां के जज्बात और हौसले बुलंद थे 

मां ने मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों की परवरिश की उनको शिक्षित किया और अच्छे संस्कार दिए जिसकी वजह से सभी गांव के लोग बेहद प्यार करते थे और किसी चीज का अभाव भी नहीं होने देते थे 

जब मेरी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं होते थे तो स्कूल के प्रधानाचार्य फीस भरकर पढ़ाते थे मैं पढ़ाई में अत्यधिक निपुण था इसलिए स्कॉलरशिप भी मिला करती थी  लाइब्रेरी से पुस्तकें  मिल जाया करती थी उन पुस्तकों पर कबर चढ़ाकर व सिलाई करके  नई बना लिया करते थे और पूरे साल अध्ययन करने के बाद लाइब्रेरी में वापस लौटा दिया करते थे 

सुबह 4:00 बजे उठकर अपनी माता जी के साथ काम में हाथ बटाया करते थे पशुओं का चारा इत्यादि किया करते थे सर्दियों के समय ईख काटने जाया करते थे फू च छोल किया करते थे वहां से आने के बाद कुए पर स्नान करने के बाद कपड़े बदलकर जो भी खाना मिल जाता था वही खाकर स्कूल चले जाया करते थे स्कूल से आने के बाद जैसा खाना मिल जाता था वैसा ही पेट भरने के लिए खा लिया करते थे फिर पशुओं का चारा मशीन पर काटा करते थे सर्दियों में कोल्हू पर शाम को चले जाया करते थे गोलू चला कर गरम-गरम गुड़ खा लिया करते थे और कुछ गुड़ तथा गन्ने घर के लिए भी लाया करते थे

 शाम को पशुओं को बाहर से अंदर बांधकर झोपड़ी मैं लालटेन की रोशनी में अपनी पढ़ाई किया करते थे रात और दिन का पता नहीं चलता था सुबह और शाम कब हो गई पता ही नहीं चलता था दिन और रात ऐसे ही निकल जाते थे

 लेकिन भाई बहनों में इतना प्यार था एक दूसरे की भावनाओं को समझते थे कभी भाई बहनों में आपस में झगड़ा नहीं हुआ कभी माताजी को डांटने फटकार ने का अवसर भी नहीं दिया  सभी आंखों के इशारे पर कार्य किया करते थे सभी अपनी जिम्मेदारी निभाया करते थे अपनी इच्छा को कभी जाहिर नहीं किया करते थे अपनी इच्छाओं को मारकर सिर्फ जीवन यापन करते थे

 कभी कोई घर पर मेहमान आ जाता था तब उस समय आलू की सब्जी और पूरी बनाई जाती थी और उसी समय खीर भी खाने को मिल जाती थी जब बुआ फूफी मामी मामा और अन्य रिश्तेदार एक ₹2 देते थे तब मां आंख निकाल दिया करती थी और हम पैसा लेने से इनकार कर देते थे  फिर वह हमारी माता जी को कसम धर्म दिया करते थे फिर हम वह एक या दो रुपए पकड़ा करते थे और अपनी मां को दे दिया करते थे

 ऐसा जमाना था पहला कभी हमारे घर में ताला नहीं लगाया जाता था घर में सभी एक दूसरे पर भरोसा किया करते थे और सभी पर विश्वास था मां ने हमें ईमानदारी और सत्यता का पाठ पढ़ाया मेहनतकश मजदूर बनाया बहन बेटियों का सम्मान करना सिखाया बड़े बहन भाइयों के सामने हम मुंह नहीं खोला करते थे चाचा ताऊ की सभी बहनों को अपनी बहन समझते थे और भाइयों को अपने भाई समझकर सम्मान दिया करते थे

 पूरी गली की सफाई झाड़ू से किया करते थे शाम के समय पानी का छिड़काव किया करते थे बहुत ही सुंदर और साफ सुथरा घर रहता था बिजली नहीं थी एसी कूलर पंखे भी नहीं थे गांव से बाजार तक पैदल जाया करते थे

  होली दिवाली पर कभी-कभी नए कपड़े पहनने का अवसर मिलता था जिनको पहनकर मन को बहुत प्रसन्नता होती थी शिवरात्रि पर जंगल की बेरिया से बेर तोड़कर लाया करते थे दशहरे पर घर पर ही जलेबी बनाया करते थे

 आज पिछले दिन याद आते हैं और आज के दिनों को देखकर लगता है पहले दिन ही अच्छे थे जब आपस का प्यार था कोई किसी का नुकसान नहीं करता था भूख प्यास में एक दूसरे का साथ देता था भले ही बड़ी नौकरी नहीं थी लेकिन आपस में मक्का के बदले गेहूं गेहूं के बदले बाजरा आदि बदल बदल कर अपनी इच्छाएं पूरी कर लिया करते थे

 मेरा जीवन विषम परिस्थितियों और अभावों में गुजरा था लेकिन मां ने जीना सिखाया और आज सफलता की मुकाम पर चल रहे हैं तथा सम्मानित जिंदगी जी रहे हैं अपने जीवन में हमने मां के अलावा किसी की पूजा नहीं की मां की चरण वंदना करके ही हमेशा आशीर्वाद प्राप्त किया और मां का आशीर्वाद हमेशा फलीभूत हुआ और गुरुओं का सम्मान किया जिसकी वजह से  गुरुओं की कृपा दृष्टि बनी रही जिसकी वजह से आज प्रोफ़ेसर और डॉ एमपी सिंह के नाम से लोग जान और पहचान रहे हैं

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