भारत देश के महान महापुरुषों का इतिहास
महात्मा गौतम बुद्ध
जन्म -563 ईसवी पूर्व, लुंबिनी, नेपाल
जन्म का नाम - सिद्धार्थ
जीवनसाथी- राजकुमारी यशोधरा
बच्चे -राहुल
पिता- शुद्धोधन
माता- माया देवी
धर्म- बौद्ध धर्म
जन्म का स्थान- कपिलवस्तु
कपिलवस्तु की महारानी माया देवी के गर्भ से लुंबिनी वन में गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईस्वी पूर्व हुआ था इनके जन्म का नाम सिद्धार्थ था इनके पिता शुद्धोधन कपिल वस्तु के राजा थे
सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन बाद इनकी माता जी का देहावसान हो गया जिसकी वजह से उनका लालन-पालन इनकी मौसी गौतमी के द्वारा किया गया
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद की शिक्षा के साथ-साथ राजकाज और युद्ध विद्या की शिक्षा भी प्राप्त की
उन्होंने अनेकों विद्वानों को गुरु बनाया और सभी से ज्ञान प्राप्त किय इन्होंने कुश्ती तीर कमान घुड़सवारी रथ चलाने में भी महारत हासिल की उस समय उनकी बराबरी कोई नहीं कर पाता था
इनका विवाह 16 वर्ष की उम्र में दंडपानी की कन्या यशोधरा के साथ कर दिया गया यशोधरा के गर्भ से एक संतान की उत्पत्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया
शाक्य नरेश सिद्धार्थ विवाह उपरांत नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्याग कर मुक्ति मार्ग की तलाश में राजपाट छोड़कर जंगल में निकल गए
विहार स्थित बोधि वृक्ष के नीचे कठोर साधना की जहां पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन गए ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम बनारस के निकट सारनाथ में पांच सन्यासी साथियों को ज्ञान दिया शिष्यों को पंचवर्गीय कहा गया इससे धर्मचक्र परिवर्तन हुआ
महात्मा बुद्ध के उपदेशों का प्रचार व प्रसार सम्राट अशोक ने दिया कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर अशोका का परिवर्तित हो गया और उसने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात कर लिया महात्मा बुध घूम घूम कर अपने विचारों को सभी नगरों में प्रसारित करते रहे और सभी जगह उनके अनुयाई बनते रहे अंत में कुशीनगर में उन्हें अतिसार रोग हो गया जिसकी वजह से 483 ईसवी पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन अमृत आत्मा मानव शरीर को छोड़ ब्रह्मांड में लीन हो गई इस दिन को महानिर्वाण दिवस कहा जाता है
जब सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे तो कुछ महिलाओं के बोल उनके कानों तक पहुंचे महिलाएं बोल रही थी कि सारंगी के तारों को इतना ढीला मत छोड़ो कि उसमें से सुर ही ना निकले और इतना टाइट भी मत करो कि वह तार टूट ही जाए इन्हीं शब्दों से उन्होंने जीवन का सार निकाल लिया कि अति तो किसी की भी अच्छी नहीं है हमें मध्यम मार्ग को ही अपनाना चाहिए और उसी दिन से उन्होंने मध्यम मार्ग को अपना लिया
जब सिद्धार्थ शिक्षा के लिए घर से बाहर निकल रहे थे तो उन्होंने चार आदमियों को अर्थी उठाते हुए देखा अनेकों महिलाओं को रोते हुए देखा अनेकों लोग अर्थी के पीछे चल रहे थे और वार्तालाप कर रहे थे सभी को वहीं जाना है कोई आगे तो कोई पीछे
उक्त सभी देखकर व सुनकर सिद्धार्थ के मन में बेचैनी हुई और अनेकों प्रश्न उन्होंने उन सभी लोगों से पूछ डाले लेकिन संतोषजनक जवाब नहीं मिले इसीलिए उन्होंने सच जानने की प्रक्रिया को अपनाया और राजपाट को छोड़कर सच की तलाश में निकल गए
पहले तो सिद्धार्थ ने तिल और चावल खाकर तपस्या की लेकिन बाद में निराहार तपस्या शुरू कर दी बिना आहार के उनका शरीर सूखकर लकड़ी की तरह हो गया बुद्ध के प्रथम गुरु अलार कयाम थे जिन्होंने सिद्धार्थ को पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानअस्त किया था
बुद्ध ने बोधगया में निरंजन नदी के तट पर कठोर तपस्या की थी समीपवर्ती गांव की एक महिला को बच्चा पैदा नहीं होता था उसने उस वृक्ष से मन्नत मांगी और कुछ समय के पश्चात उसे बच्चा हो गया तब वह सोने की कटोरी में खीर लेकर उसे भोग लगाने के लिए आई तब उसने सोचा कि वृक्ष ने स्वत ही खीर खाने के लिए इंसान का रूप धारण कर लिया है और उस महिला ने बड़े ही भाव से उसे खीर खिलाई और कहा कि जिस तरह मेरी मनोकामना पूरी हुई है उसी तरह आपकी भी मनोकामना पूरी हो जाए उसी दिन सिद्धार्थ की साधना सफल हो गई और तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए जिस पीपल के नीचे सिद्धार्थ को आत्मबोध हुआ वह बोधिवृक्ष कहलाया और समीपवर्ती स्थान बोधगया हो गया
सत्य और अहिंसा के मार्ग को दिखाने वाले महात्मा बुध आध्यात्मिक विभूतियों में अग्रणीय माने जाते हैं महात्मा बुद्ध के द्वारा बताए गए सिद्धांतों को लोग दुनिया भर में मान रहे हैं कि महात्मा बुद्ध ने मानव कर्म को नैतिक साधन का आधार बताया है
उन्होंने बताया कि केवल विद्वान होना पर्याप्त नहीं है विद्वान वही है जो अपने ज्ञान की रोशनी से सब को रोशन करें उन्होंने सामाजिक भेदभाव को मिटाने का भरसक प्रयत्न किया
उन्होंने कहा कि लोगों का मूल्यांकन जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधार पर करना चाहिए उन्होंने कहा कि मनुष्य को दया करना और मैत्री भाव को अपनाना चाहिए ईश्वर की जगह नैतिकता को समर्पित कर देना चाहिए
सुशील बनकर बौद्ध धर्म के रास्ते पर चलना चाहिए और शांत मन से दूसरों के दुखों को दूर करना चाहिए
माता सावित्रीबाई फूले
देश की अकल्पनीय, अद्भुत, अतुलनीय, अनुकरणीय, महिलाशक्ति ,नारीशिक्षा कुंज, परम आदरणीय, परम पूज्य, परम श्रद्धेय, माता सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नया गांव में हुआ था इनके पिताजी श्री खंडूजी देव तथा माताजी श्रीमती लक्ष्मीबाई थी.
इनका विवाह 09 वर्ष की अल्पायु में सतारा के गोविंद राम पुणे व जमुनाबाई फुले के 13 वर्षीय नाबालिक होनहार बेटे ज्योतिबा फुले के साथ 1840 में हुआ था.
महामना महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपनी जीवनसाथी को शुरुआत में खेत में आम के पेड़ के नीचे बालू मिट्टी पर पढ़ाना शुरू किया और उसके बाद सामाजिक तथा धार्मिक विरोध को सहन करते हुए माता सावित्रीबाई फुले को आठवीं तक शिक्षा दिलवाई
देश की प्रथम शिक्षिका माता सावित्रीबाई फुले ने भारत में रूढ़िवादी परंपराओं के विरुद्ध महिलाओं को शिक्षा देने का आगाज 1 जनवरी 1848 को किया जिसका धर्म के ठेकेदारों ने जमकर विरोध किया परंतु माता सावित्रीबाई फुले के अदम्य साहस के आगे उनकी एक न चली
प्रथम छात्राओं के रूप में अन्नपूर्णा जोशी 5 वर्ष सुमति काशी 4 वर्ष दुर्गा देशमुख 6 वर्ष माधवगढ़ 6 वर्ष सोनू कुमार 4 वर्ष और जानी करजुले 5 वर्ष ने विद्यालय में दाखिला दिया
मजदूरों को शिक्षा देने के लिए माता सावित्रीबाई फुले ने रात्रि कालीन विद्यालयों का संचालन किया
महात्मा ज्योतिबा फुले और माता सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए एक प्रशिक्षण संस्थान खोलकर शिक्षा जगत में क्रांति का बिगुल बजाया
समाज सेविका सावित्रीबाई फुले ने बाल हत्या और बाल विधव हत्या को रोकने के लिए देश में पहला अवैध प्रसूति केंद्र खोलकर बालिकाओं का जीवन बचाने का अदम्य साहस किया
रूढ़ीवादी परंपराओं के अनुसार बच्चों का जन्म अशुभ माना जाता था और भेदभाव को यह सामाजिक तत्व गर्भवती कर देते थे ऐसी महिलाएं वहां अपने बच्चों को जन्म देकर सुरक्षित हो जाती थी
जाति व्यवस्था इतनी अमानवीय थी कि अछूतों के लिए सार्वजनिक कुओं से पानी भरना बिल्कुल मना था वह दूसरों की दया पर निर्भर थे ऐसी व्यवस्था को ठोकर मारकर जलदाय सावित्रीबाई फुले ने जातिवादियों के भारी विरोध को दरकिनार करके वंचितों के लिए अलग से कुआं खुदवाकर पानी की व्यवस्था की
माता सावित्रीबाई फुले ने सफाई कर्मियों के सामाजिक स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी सुधार के लिए भी काम किया अवकाश के दिन उनके घरों पर जाकर जानकारी देती थी और उनके बेहतर जीवन के लिए काम करती थी
अट्ठारह सौ 76 में पुणे में भयंकर अकाल पड़ा था उस अकाल से प्रभावित लोगों की मदद के लिए अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ धनाढ्य लोगों से चंदा लेकर जरूरतमंदों को आवश्यक सामग्री का वितरण किया तथा 52 राहत शिविर खोले
हिंदू धर्म में भेदभाव की स्थिति बहुत दयनीय थी उनका पुनर्विवाह मना था उनके सिर के बाल काट दिए जाते थे जिसका माता सावित्रीबाई फुले ने विरोध किया और नाइयो को भेदभाव का मंडप नहीं करने के लिए मना कर दिया
अपने क्रांतिकारी जीवन साथी के साथ मिलकर बिना ब्राह्मणों के बहुजन व पुनर्विवाह करना शुरू किया ब्राह्मणों से बाल कटवाने के अलावा निमंत्रण भी दिलवाने का काम करते थे परंतु उनका उचित हिस्सा नहीं देते थे तो उसके लिए माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर नाइयों की हड़ताल की और उन्हें उनका उचित हिस्सा दिलवाने का प्रावधान किया
गरीब मजदूर लोग शराब खोरी में रिश्वत खोर हाकिम के शिकार हो जाते थे और अनायास परेशान होते थे जिसके विरोध में भी माता सावित्रीबाई फुले ने सफलतापूर्वक आंदोलन चलाया था
शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने अपने लोगों के मार्गदर्शन करने के लिए साहित्य का विसर्जन किया था
अंततः महान समाजसेविका माता सावित्रीबाई फुले का 18 97 की महामारी के पीड़ितों की सेवा करते हुए 10 मार्च 897 को परिनिर्माण हो गया
माता सावित्रीबाई फुले को शत-शत नमन
डॉ भीमराव अंबेडकर
जन्म- 14 अप्रैल 9891, मध्य प्रदेश, भारत.
जन्म स्थान- महानगर सैन्य छावनी
पिता का नाम- रामजी मलोजी सकपाल
माता का नाम - भीमाबाई मुबारदकर
जन्म का नाम- भीवा भीमराम
बाद का नाम- बाबासाहब भीमराव अंबेडकर
राष्ट्रीयता- भारतीय
धर्म- बौद्ध धर्म
जाति- महार
शिक्षा- एम ए मुंबई विश्वविद्यालय से एम ए पीएचडी एलएलडी कोलंबिया विश्वविद्यालय से ,एमएससी डीएससी लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स
प्रोफेशन- विधिवेता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद, दार्शनिक, लेखक, पत्रकार, समाजशास्त्री, संपादक,
जीवनसाथी- रमाबाई अंबेडकर 1906- 1935, डॉ सविता अंबेडकर 1948 - 2003
बच्चे - यशवंत अंबेडकर
राजनीतिक दल- एचडी फेडरेशन, स्वतंत्र लेबरपार्टी, भारतीय रिपब्लिकन पार्टी, समता सैनिक दल ,भारतीय बौद्ध महासभा
पुरस्कार- बोधिसत्व 1956 में 1920 में ,
भारत रत्न 1990 , द ग्रेडियंट इंडियन 2012 में
मृत्यु- 6 दिसंबर 1956 ,उम्र 65 वर्ष
समाधि स्थल - मुंबई, महाराष्ट्र
डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1896 को भारत के मध्य प्रदेश के भीमा गांव में हुआ था इनकी माता का नाम भीमाबाई और इनकी पिता का नाम रामजी सकपाल था यह भीमा भाई और रामजी सकपाल की 14 वी संतान थे यह कबीर पंथ को मानने वाले थे
इनका जन्म दलित जाति में हुआ था इनकी जाति को अछूत माना जाता था जिसकी वजह से इनका पूरा जीवन बहुत ही मुश्किलों से भरा और संघर्षपूर्ण रहा सभी निम्न जाति के लोगों को सामाजिक बहिष्कार और तिरस्कार को सहना पड़ता था इनके माता-पिता बेहद गरीब थे जिसकी वजह से रहने की उचित व्यवस्था नहीं थी इसलिए बारी-बारी से सोया करते थे खाने पीने की भी उचित व्यवस्था नहीं थी इसलिए कई बार भूखा भी रहना पड़ता था इनके माता-पिता इनको मन से पढ़ाना चाहते थे इसलिए भीमराव भी मन से पढ़ते थे
इन्होंने 1907 में अंबेडकर गुरु जी के आशीर्वाद से मैट्रिक परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया इसके बाद सिस्टम कॉलेज से 1912 में स्नातक किया 1913 से 15 तक भारत व्यापार पर शोध किया 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र मे मास्टर डिग्री की 1917 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली फिर नेशनल डेवलपमेंट और इंडिया एंड एनालिटिक्स स्टडी पर शोध किया
वह अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे इंसान थे वह बचपन से ही दूरदर्शिता पर काम करते थे वह सच्चाई के मार्ग पर चलते थे और न्याय संगत बातें करते थे न्याय की लड़ाई लड़ते थे कौन उनके पक्ष में है और कौन विपक्ष में है इसकी परवाह नहीं करते थे वह बाहर आडंबरो उनके खिलाफ थे वह किसी के साथ मतभेद नहीं रखते थे जो सच नहीं होता था वह उसक हमेशा विरोध करते थे
वह किसी को खुश करने के लिए काम नहीं करते थे वह किसी की चापलूसी भी नहीं करते थे वह कर्म में विश्वास रखते थे
उनको अपनी मां से बेहद प्यार था उनकी मां ने भी हर पल उनको बेहतर समझाने की कोशिश की और निर्भीक निडर तथा स्वाभिमान बनाया उनकी मां का सपना था कि वह पढ़ लिखकर बहुत बड़ा इंसान बने और इन बुराइयों तथा कुरीतियों को समाप्त करें बाबा भीमराव अंबेडकर ने ऐसा ही करके दिखाया और हमेशा अपनी माताजी की शिक्षाओं को मध्य नजर रखते हुए कार्य करते थे
लेकिन उनकी दूसरी आई जीजाबाई थी जिसके साथ अक्सर मतभेद ही रहते थे भीमराव ने कभी जीजाबाई को आई कहकर नहीं बुलाया और जीजा भाई ने भी भीमराव को दुख तकलीफ देने में कोई कमी नहीं छोड़ी लेकिन भीमराव की पत्नी रमाबाई हमेशा ढाल बनकर खड़ी रही और परछाई की तरह काम करती रही जिसकी वजह से भीमराव अंबेडकर को हमेशा विषमताओं में भी सफलता मिलती रहे बाबा भीमराव अंबेडकर बनाने में रमाबाई का विशेष सहयोग रहा
भीमराव अंबेडकर को सतारा में सभी जातियों के लोगों ने पूर्ण रूप से सताने डराने धमकाने मारने की कोशिश की लेकिन कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया और मुंबई में भी सातारा जैसे लोग ही मिल गए जिन्होंने भीमराव को असफल करने के लिए पढ़ाई को रोकने के लिए एड़ी और चोटी का जोर लगा दिया और अंग्रेजी सल्तनत के साथ मिल गए अनेकों प्रकार के झूठे केसों में फसाने की कोशिश की लेकिन भीमराव को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचा पाए
नरोत्तम जोशी जैसे अनेको लोगों ने भीमराव की पढ़ाई को बाधित किया उन्होंने कॉलेज से भीमराव को निष्कासित भी कर दिया अंग्रेजी सल्तनत के साथ मिलकर उन्होंने कॉलेज को लॉगआउट भी करा दिया षड्यंत्र के तहत कॉलेज में भीमराव के साथ मार पिटाई भी की उनकी भाषाई शिक्षा तथा खाने-पीने पर भी प्रतिबंध लगाया उनके परिवार पर भी अत्याचार किया भीमराव को जलील करने के लिए अपने यहां पर नौकरी पर भी रखा और बेइज्जत भी किया लेकिन उक्त सभी से ज्ञान प्राप्त करके भीमराव आगे बढ़ते रहे जब भीमराव कहीं नौकरी प्राप्त करने जाते तब उनके मालिकों को भीमराव के खिलाफ भड़का दिया जाता है यदि कहीं नौकरी भी मिल जाती है तो वहां से निकलवा दिया जाता
अनेकों बार खाने के लिए भोजन नहीं मिलता फीस भरने के लिए पैसे नहीं होते थे किताब खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे कई बार बड़ी जात के लोगों ने भीम की किताब कोपियों को फाड़ दिया पानी में फेंक दिया लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारी और लगातार पढ़ाई के लिए संघर्ष करते रहे लोगों से लड़ाई लड़ते रहे और आगे बढ़ते रहे
भीमराव की चाल के कुछ लोग नरोत्तम जोशी व डेविड के साथ मिलकर भीम को मारना चाहते थे भीमराव की जाति के लोग भी भीमराव के साथ नहीं थे वह भी चंद पैसों में बिककर रामजी सकपाल के परिवार के सदस्यों को परेशान करते रहते थे लेकिन भीमराव की काबिलियत धैर्य हिम्मत साहस पत्नी का साथ तथा पिता का प्यार साथ था जिसकी वजह से वह हर षड्यंत्र से आसानी से निकल जाते थे और महामहिम राज्यपाल जैसे लोग भीम की मदद के लिए आगे आ जाते थे
वह हमेशा बुद्धि और विवेक से काम लेते थे भावनाओं में नहीं बहते थे उन्हें कई बार बाला भाई का सामना भी करना पड़ा अनेकों बार भीम को अपने परिवार के लोगों तथा रिश्तेदारों काही सामना करना पड़ा और उस सामने में सभी विरोधियों को नतमस्तक होना पड़ा यह सब शिक्षा का कमाल था
उनके पास जो भी मदद मांगने आ जाता था वह हमेशा उसकी मदद करते थे वह किस जाति का है किस धर्म का है वह मेल है या फीमेल इससे उनका कोई लेन-देन नहीं था वह हमेशा न्याय संगत बातें करते थे
वह हमेशा अपनी डायरी लिखते थे और प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाओं के समाधान के बारे में भी लिखते थे और सभी को न्याय तथा इंसानियत का ही पाठ पढ़ाते थे इसीलिए उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई और उनके अनुयाई बनते गए
वह अनेको भाषाओं के ज्ञाता थे उन्होंने 1921 में मास्टर ऑफ साइंस तथा 1923 में डॉक्टर और कॉमर्स की उपाधि हासिल कर ली
अंबेडकर के पिताजी इंडियन आर्मी में सूबेदार थे और वह 1894 में रिटायर हो गए उनका पूरा परिवार महाराष्ट्र के सतारा में स्थानांतरित हो गया वह दलित वर्ग के थे जिसकी वजह से सामाजिक भेदभाव को झेलना पड़ता था दलित होने की वजह से शिक्षा प्राप्त करने में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन अपार कठिनाइयों के बावजूद भी उच्च शिक्षा हासिल कर ली
उस समय दलित वर्ग के विद्यार्थियों को विद्यालय में दाखिला नहीं दिया जाता था लेकिन फिर भी भीमराव का दाखिला उनके पिताजी सूबेदार सतपाल ने करा दिया भले ही भीमराव को कक्षा के बाहर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ी अस्पृश्यता और भेदभाव को भी सहन करना पड़ा लेकिन फिर भी अध्यापकों का प्यार प्राप्त कर लिया
भीमराव अंबेडकर की प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके शिक्षक श्री कृष्ण जी अर्जुन केलुसकर ने अपने द्वारा लिखित पुस्तक बुद्ध चरित्र गिफ्ट के तौर पर प्रदान की और बड़ौदा के नरेश संभाजीराव गायकवाड की फेलोशिप पाकर अपनी आगे की पढ़ाई को जारी रखा
बाबा साहब बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के होनहार विद्यार्थी थे इसलिए हर परीक्षा में उत्तम अंक प्राप्त करके अपना इतिहास बनाते रहते थे उन्होंने संस्कृत और फारसी की भी पढ़ाई की थी इन्होंने भारत का राष्ट्रीय अंश भारत में जातियां और मशीनीकरण भारत में लघु कृषि और उनके उपचार मूलनायक ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी विश्व का विकेंद्रीकरण रुपए की समस्या बहिष्कृत भारत जाती विच्छेद सच बनाम स्वतंत्रता पाकिस्तान पर विचार आदि पर विशेष कार्य किया
वह संविधान के शिल्पकार आजाद भारत के पहले न्याय मंत्री थे वह प्रमुख कार्यकर्ता और समाज सुधारक थे उन्होंने पिछड़े व दलितों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया इसीलिए उनको दलितों का मसीहा कहा जाता है आज जो सम्मान तथा स्थान पिछड़े वर्ग व दलितों को मिलता है उसका संपूर्ण श्रेय बाबा साहब को जाता है
यह हमेशा मुश्किलों से लड़ते रहे और स्वाभिमान से जीते रहे उन्होंने कभी आराम की जिंदगी को नहीं जिया हमेशा समानता लाने के लिए संघर्ष करते रहे जिन्होंने अस्पृश्यता और छुआछूत को दूर करने का भरसक प्रयत्न किया
डॉ भीमराव अंबेडकर 1948 में मधुमेह से पीड़ित थे और वह 1954 तक बीमार रहे 6 दिसंबर 1956 को उन्होंने दिल्ली स्थित अपने मकान में अंतिम सांस ली और चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली के द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया इसीलिए इस दिन अंबेडकर जयंती मनाई जाती है और अवकाश भी रखा जाता है
महान संत व जगत गुरु रविदास
जन्म 1433 काशी
माता ध्रुव निया कल साहब देवी
पिता रघु संतोष दास जी
व्यवसाय जूते बनाने का काम
शिक्षा साधु संगत से पर्याप्त व्यवहारिक ज्ञान
गुरु संत रामानंद
पत्नी लोना
आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब
जाति चर्मकार
बचपन का नाम रैदास
मृत्यु 1540 वाराणसी
गुरु रविदास जी 1516 वी शताब्दी के महान संत दार्शनिक कभी समाज सुधारक थे उनको भगवान का अन्याय व निर्गुण संप्रदाय के संत माना जाता है आम लोग उनको अपना मसीहा मानते थे उन्होंने सामाजिक व आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े कार्य किए थे अनेकों अन्याई आज भी उनको अपना भगवान मानते हैं और पूजा करते हैं समाज को बदलने के लिए रविदास जी ने कलम का सहारा लिया और बताया कि अपने पड़ोसी से समान व्यवहार व प्रेम करना चाहिए
बताया जाता है कि जब रविदास की शिक्षा प्राप्त के लिए गुरु सारदानंद की पाठशाला जाया करते थे तो उच्च कुल और जाति वालों ने उनके पढ़ाई को रोक दिया लेकिन गुरु शारदानंद जी रविदास जी की प्रतिभा से प्रभावित थे इसलिए उन्होंने समाज की उच्च नीच को नहीं माना स्वयं पढ़ाया उन्होंने कहा कि 1 दिन रविदास महान समाज सुधारक व आध्यात्मिक गुरु बनेंगे गुरु शारदानंद जी अपने बेटा को भी इनके साथ पढ़ाया करते थे और दोनों ही जातिगत भेदभाव को बुलाकर छुपन छुपाई का खेल खेला करते थे
बताया जाता है कि मीराबई के आध्यात्मिक गुरु संत रविदास हुआ करते थे मीराबाई ने अपनी रचनाओं में लिखा है कि गुरु रविदास जी ने उन्हें कई बार मृत्यु से बचाया था शादी के बाद परिवार की सहमति से उन्होंने संत रविदास जी को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया था
रविदास जी ने समाज में हेलो छुआछूत को समाप्त करने का बहुत प्रयत्न किया उन्होंने कहा कि धरती पर रहने का अधिकार सभी को है हमें भाईचारे को बनाए रखना चाहिए उन्होंने सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया और सिख ग्रंथ में अपने संदेशों को संग्रहित करक जन-जन तक पहुंचाया
उस समय नीची जाति वालों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था मंदिरों में पूजा करने पर प्रतिबंध था गांव में दिन के समय निकलना वर्जित था गांव में पक्के मकान की बजाय कच्ची झोपड़ियों में रहने को मजबूर किया जाता था उस समय जिंदगी बेहद बदतर थी नरिया जिंदगी जिया करते उक्त सभी बातों के लिए रविदास जी ने विरोध किया और समानता लाने के लिए संघर्ष किया उस समय अस्पृश्य लोग माथे पर तिलक नहीं लगा सकते थे जनेऊ धारण नहीं कर सकते थे धार्मिक संस्कारों की आजादी नहीं थी पढ़ाई लिखाई पर भी प्रतिबंध था लेकिन उस संत रविदास जी ने विषम परिस्थितियों के बावजूद भी पढ़ाई लिखाई की धार्मिक आध्यात्मिक पुस्तकों को लिखा जनेऊ धारण किया माथे पर तिलक तथा टीका लगाया जबकि ब्राह्मण लोग बेहद नाराज थे लेकिन बाद में सभी उनके अनुयाई बन गए
रविदास जी चाहते थे कि उनके पिता का अंतिम संस्कार गंगा नदी के किनारे पर किया जाए लेकिन सवर्ण जाति के लोगों ने रोक लगा दी और अनाप-शनाप भाषण देने लगे इससे जल प्रदूषित हो जाएगा गंगा नदी के किनारे की जगह अपवित्र हो जाएगी उक्त सभी बातों को गंगा मां सुन रही थी बताया जाता है कि गंगा नदी में अचानक तूफान आ गया और पानी बाहर तक आ गया और रविदास जी के पिता के शव को गंगा नदी बहाकर ले गई सभी देखते के देखते ही रह गए इससे पता चलता है कि रविदास जी कितने तपस्वी और थे उनके चिंतन मनन में कितनी ताकत थी
भारत के इतिहास के अनुसार 1526 में पानीपत की लड़ाई हुई उस समय बाबा रो हमारी बच्चों का कत्लेआम कर रहे थे इससे रविदास जी बहुत चिंतित थे बताया जाता है कि बाबर और हुमायूं आक्रमण करने के लिए आए थे लेकिन मार्गदर्शन लेकर लौट गए और रविदास जी के हमेशा के लिए अनुयाई बन गए
बताया जाता है कि कुछ ब्राह्मणों ने रविदास जी को मारने की योजना बनाई जिसके तहत विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया रविदास जी को बुलाया लेकिन गुरु जी उनकी चाल को पहले ही समझ गए थे फिर भी गुरुजी सभा का शुभारंभ करते हैं विरोधी षड्यंत्र के तहत हमला करते हैं उस हमले में भल्ला नाथ मारा जाता है और गुरु जी बस जाते हैं
रविदास जयंती हमेशा माघ के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है इस दिन भारत सरकार की तरफ से अवकाश रहता है सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों के द्वारा गुरु रविदास जयंती बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है सिख समुदाय के लोग जगह-जगह पर नगर कीर्तन निकालते हैं मंदिरों में गुरुद्वारों मैं रविदास जी के दोहे तथा भजन गाए जाते हैं हम सभी को गुरु रविदास की शिक्षाओं पर चलना चाहिए और भाईचारे की सीट को आत्मसात करना चाहिए
समाज सुधारक व ईश्वर की रानी आई थी बचपन में ही अद्भुत विचारों से भरपूर थे उन्होंने कभी भी अपने पैतृक कार्य से मुंह नहीं मोड़ा था अपने परिवार के पोषण के लिए अपने पैतृक कार्य को ही करते थे कार्य से प्राप्त एक सिक्के को उन्होंने मां गंगा को समर्पित कर दिया जिसे लेने वह साक्षात प्रकट हो गई ऐसा बताया जाता है कि अपने वचन के पक्के वह दयावान थे मेहनत करके अपने बच्चों का भरण पोषण करते थे माता-पिता ने बहुत छोटी उम्र में इनका विवाह लो ना देवी से कर दिया था इससे विजय दास नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई उनके कुछ अन्याय थे उनका मानना है कि उनकी मृत्यु 120 वर्ष की उम्र में वाराणसी में हो गई थी वाराणसी में गुरु रविदास पारक गुरु रविदास जी स्मारक गुरु रविदास घाट गुरु रविदास नगर आदि बनाए गए आज देश के हर शहर में रविदास के नाम पर अनेकों स्मारक है
उस समय गांव के अमीर सीट को गंभीर बीमारियों ने घेर लिया दुनियाभर में इलाज के बावजूद भी ठीक नहीं हुए तभी कुछ लोग एकत्रित होकर सेठ जी को उपचार हेतु संत रविदास जी के पास लेकर गए संत रविदास जी ने पानी पढ़कर पीने को और लगाने को दे दिया जिससे सेठ जी ठीक हो गए और सभी लोग संत रविदास जी के अनुयाई बन गए
एक बार राजा ने घोषणा की कि जिसकी मूर्ति नदी में तैर जाएगी वह सच्चा भक्त होगा और जिसकी मूर्ति पानी में डूब जाएगी वह झूठा को जारी होगा अनेकों पुजारी अपनी-अपनी मूर्ति लेकर आ गए और बारी-बारी से गंगा में डालने लगे सभी की मूर्तियां डूब गई लेकिन संत रविदास जी की मूर्ति तैरने लगे इससे पता चलता है कि आध्यात्मिक ज्ञान में भक्ति भाव में ताकत है लेकिन यह ताकत मानवीय गुणों को अपनाने से आती है इसलिए हमें सत्यता सहजता उदारता करना दया मैत्री भाव को अपनाना चाहिए
अस्पृश्यता और छुआछूत को छोड़ देना चाहिए हम सभी के शरीर में प्रवाहित होने वाला रक्त लाल रंग का होता है नीला पीला हरा गुलाबी नहीं होता है इसलिए हमें भेदभाव नहीं मैत्री भाव को अपनाना चाहिए
एक बार भगवान ने अपना प्रतिनिधि एक पत्थर लेकर संत रविदास के पास भेजा और कहा कि उसको खूब प्रलोभन देना लेकिन अनेकों प्रणव वनों के बावजूद भी संत रविदास ने उस पत्थर को नहीं लिया उसने कहा कि इस पत्थर को जिस वस्तु से लगा दोगे वही वस्तु सोने की हो जाएगी लेकिन संत रविदास तो ईमानदार खुद्दार थे उन्होंने उस विषय पर ध्यान ही नहीं दिया अंत में उस व्यक्ति से कहा कि मैं इस पत्थर को आप की झोपड़ी में रख कर जाऊंगा बाद में वापस आते समय इस पत्थर को आप से प्राप्त कर लूंगा जब वह व्यक्ति कुछ समय के पश्चात वहां आया तो उसने पाया कि जहां पत्थर को रखा है वह पत्थर वहीं पर रखा हुआ है इससे संत रविदास की इमानदारी तथा महानता का पता चलता है
एक बार कुछ लोगों ने संत रविदास से गंगा स्नान के लिए कहा लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों को देखते हुए उन्होंने मना कर दिया उनके बार बार कहने पर भी संत रविदास में गंगा स्नान करने जाने के लिए मना कर दिया तब उन्होंने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा स्नान करने से मन नहीं तन सफ हो सकता है मन को साफ करने के लिए तो सत्य और सत्कर्म को अपनाना होगा उन्होंने कहा कि किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मन और आत्मा शुद्ध नहीं होती है
वे अपने समय के महान संत थे लेकिन फिर भी आम व्यक्ति की तरह जीवन जीते थे और हर किसी के सुख-दुख को समझते थे और दलितों का उद्धार करने के लिए ही अवतरित हुए थे इसीलिए समाज में व्याप्त बुराइयों का विरोध करते थे और समानता का व्यवहार करने पर मजबूर करते थे
उनकी वाणी का प्रभाव इतना पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके अन्याय व श्रद्धालु बन गए मीराबाई उनकी भक्ति भावना से प्रभावित होकर उनकी शिक्षा बन गई
आज भी संत रैदास के उपदेश समाज उत्थान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है उन्होंने कहा कि विचारों की श्रेष्ठता से मनुष्य महान बनता है जाति व धर्म से नहीं उन्होंने अनेकों मधुर व भक्तिमई रसीली रचनाओं का निर्माण किया और समाज के उद्धार के लिए समर्पित कर दिया उन्होंने लोगों को पाखंड और अंधविश्वास को त्यागने हेतु अपील की और अपने सदुपयोग देशों के द्वारा लोगों में नई चेतना का संचार किया संत रविदास जी को सिंधु घाटी सभ्यता के वाहक माना जाता है संत सद्गुरु संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत सारी भ्रांतियां है
महर्षि बाल्मीकि जी
मनुस्मृति के अनुसार बाल्मीकि जी वशिष्ठ नारद पुलस्थ आदि के भाई थे उनके बारे में अनेकों प्रकार की किंवदंतियों है इन्होंने आदि काव्य रामायण लिखा जिसमें 24000 श्लोक हैं और सात कांड हैं जिसमें बालकांड अयोध्याकांड अरण्यकांड किष्किंधा कांड सुंदरकांड लंकाकांड तथा उत्तरकांड है जिस में राम का संपूर्ण जीवन चरित्र बताया गया है
महर्षि बाल्मीकि संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य रामायण के रचयिता थे बाल्मीकि जी वैदिक काल के महान ऋषि बताए जाते हैं उनका आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे बताया जाता है बताया जाता है कि वह प्रचेता के पुत्र थे प्रचेता का दूसरा नाम वरुण होता है और वरुण ब्रह्मा जी के पुत्र थे अर्थात बाल्मीकि जी प्रचेता के दसवें पुत्र बताए जाते हैं
उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके नाम अग्नि शर्मा व रत्नाकर भी बताए जाते हैं उनकी माता का नाम जर्मनी और भाई का नाम भ्रुगू बताया जाता है आदि कवि वाल्मीकि जी का जीवन प्रेरणादायक है जीवन का अर्थ समझने और व्यवहार की शिक्षा देने हेतु उन्होंने राम का जीवन चरित्र महाकाव्य रामायण के रूप में आदर्श ग्रंथ देश और दुनिया को समर्पित किया उन्होंने राम सीता के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का करुणा रस का रूप दिया सीता राम के बिरह का मार्मिक वर्णन किया विषम परिस्थितियों में धैर्य को कैसे धारण किया जाए और मर्यादा में रहकर मुकाम तक कैसे पहुंचा जाए का उल्लेख बड़ी ही शालीनता व सरलता के साथ किया वाल्मीकि जी के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है
वह असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे वह पूजनीय वंदनीय और प्रार्थनीय थे उनकी प्रेरणा से हर व्यक्ति सत्कर्म को अपना सकता है
बाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को बताया जाता है इसीलिए इसी दिन बाल्मीकि जयंती भी मनाई जाती है बाल्मीकि जयंती पर अनेकों स्थानों पर धार्मिक आयोजन किए जाते हैं शोभायात्रा निकाली जाती हैं मिष्ठान फल पकवान आदि वितरित किए जाते हैं अनेकों जगह पर भंडारे का आयोजन किया जाता है
बताया जाता है कि त्रेता युग में इनका जन्म ब्राह्मण के घर में हुआ और इनका नाम रत्नाकर रख दिया गया पिता के लाख मना करने के बावजूद यह 1 दिन पास के जंगल में चले गए किंतु वहां से वापस लौटने का मार्ग नहीं मिला यह सोनाली नामक भील को मिल गए और उसने इनका पालन पोषण किया बड़े होकर इनका विवाह चरणीय नामक भीलनी से कर दिया गया अब इनका परिवार बढ़ गया और जिम्मेदारियां भी बढ़ गई संसाधन कम थे
बताया जाता है कि मजबूरी में इनको चोरी और डकैती परिवार के भरण-पोषण के लिए करनी पड़ी एक दिन उसी जंगल से नारद मुनि प्रभु का नाम जपते हुए निकल रहे थे तभी उन्होंने उनको लूटने की कोशिश की तब नारद मुनि ने कहा कि जिस परिवार का पेट भरने के लिए आप अनैतिक कार्य कर रहे हो क्या वह परिवार के सदस्य आपका साथ देंगे यह सवाल सुनकर रत्नाकर जी चौक गए और गहरी सांस ली और सोचने लगे यह सुनकर वह अपने घर गए और ठीक उसी प्रश्न को घरवालों से पूछा तो सभी परिवारी जनों ने उनके द्वारा किए गए कार्य का परिणाम भुगतने से मना कर दिया तब उन्हें यह एहसास हुआ की मैं तो बहुत बड़ी गलती कर रहा हूं तब तुरंत ही उन्होंने नारद मुनि को छोड़ दिया और मुक्ति का साधन पूछा तब नारद मुनि ने उन्हें राम नाम का जप करने के लिए कहा लेकिन राम नाम का जाप नहीं हुआ तब उन्होंने उल्टा नाम जप कर ही तपस्या की और भगवान के समतुल्य हो गए और ऋषि बाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हो गए
एक बार शाम के समय अपने शिष्य भारद्वाज के साथ तमसा नदी पर पहुंचे नदी किनारे उन्होंने एक सुंदर दृश्य देखा जिसमें दो क्रौंच पक्षी प्रेम में मगन होकर खेल रहे थे यह दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया इतने में कहीं से एक तीर आया और एक क्रोच को लगा जिससे उसकी मृत्यु हो गई उसकी मृत्यु के सदमे से दूसरे पक्षी की भी मृत्यु हो गई उनके हंसते खेलते परिवार को उजड़ता देखकर ऋषि बाल्मीकि जी को बहुत दुख हुआ और वह उस तीर को छोड़ने वाले को ढूंढने लगे तब उन्हें पास में ही वह शिकारी दिखाई दिया उसे देखते ही उन्हें क्रोध आया और उनके मुख से संस्कृत का पहला श्लोक निकला मां निषाद प्रतिष्ठां
इस घटना के बाद ब्रह्मदेव ऋषि बाल्मीकि जी से मिलने उनके आश्रम पर आए और उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र लिखने को कहा इस प्रकार महर्षि वल्मीकि जी आदि काव्य रामायण लिख दिया
महात्मा ज्योतिबा फुले
इनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे स्थित खानवाणी सतारा महाराष्ट्र में हुआ था इनकी माता का नाम चिमनाबाई और पिता का नाम गोविंदराव था इनकी माता जी इनको 1 वर्ष का छोड़कर ही स्वर्ग सिधार गई थी इसलिए इनका पालन-पोषण सगुनाबाई के द्वारा किया गया था बाद में इनको महात्मा फुले व ज्योतिबा फुले के नाम से जाना जाने लगा
इन्होंने मराठी भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी बाद में अंग्रेजी भाषा को अपनाया जातिगत कारणों से पढ़ाई में काफी रुकावटें आई लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घरेलू कार्यों के बाद जो समय बचता था उसमें बड़ी ही लगन और मेहनत से अपनी पढ़ाई करते थे पास पड़ोस के बड़े बूढ़ों से भी पढ़ाई लिखाई की चर्चा किया करते थे ताकि ज्ञान में वृद्धि हो जाए अन्य लोग उनकी तर्कसंगत बातों से बहुत प्रभावित रहते थे और हमेशा उनकी मदद के लिए आगे आते थे
उन्हें 7 वर्ष की उम्र में स्कूल भेजा गया था तथा 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की
उनका विवाह 1840 में सावित्रीबाई से हुआ उन्होंने अपनी पत्नी को पढ़ाया ताकि समाज की बहन बेटियों को पढ़ाकर आत्मनिर्भर बनाया जा सके और 1848 में लड़कियों को पढ़ाने हेतु विद्यालय खोल दिए
वह सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लगातार लड रहे थे वह विधवा विवाह के समर्थक थे वह बाल विवाह के विरोधी थे सावित्रीबाई फुले की संतान ना होने की वजह से उन्होंने एक बच्चे को गोद ले लिया और उसे पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बना दिया
उन्होंने दलितों को न्याय दिलाने हेतु सत्तारोधक समाज की स्थापना की और गुलामगिरी नामक पुस्तक लिखकर सभी का मार्गदर्शन किया महात्मा फुले उदारवादी सोच के विचारक थे अपनी सूझबूझ व बुद्धि विवेक के आधार पर वह आमूलचूल परिवर्तन लाए थे
उन्होंने निचले स्तर की जातियों के जीवन स्तर को ऊंचा किया सभी को समानता का पाठ पढ़ाया समान अवसर दिलवाया भेदभाव ऊंच-नीच को खत्म करने में अपनी अहम भूमिका अदा की शिक्षा का प्रचार और प्रसार किया
इन्होंने अगरकर रानडे दयानंद सरस्वती और लोकमान्य तिलक को साथ लेकर समाज की समस्याओं का निदान हेतु राजनीति शुरू की थी लेकिन कुछ दिनों के बाद पता चला कि यह लोग अछूतों को न्याय नहीं दिलाते हैं और जातिगत राजनीति करते हैं तो मतभेद हो गए और सोचने लगे कि हिंदू धर्म में इतनी विषाक्तता क्यों भरी है और गुलामी का कारण भी नजर आ गया लेकिन मानसिकता में परिवर्तन करना मुश्किल सा लग रहा था उस समय वर्णभेद चरम सीमा पर था दलित वर्ग की दशा बहुत ही विचारणीय व दयनीय थी
इन समस्याओं से निजात दिलाने हेतु उन्होंने सोचा कि नारी शक्ति को शिक्षित करना होगा ताकि वह अपने बच्चों को शिक्षित कर सके क्योंकि माताएं जो संस्कार बच्चों में डाल सकती हैं वह पिता नहीं और उन्हीं से उनका भविष्य बनता है इसी से जाति पाति और ऊंच-नीच की दीवार को खत्म किया जा सकता है इसीलिए इस व्यवस्था को तोड़ने हेतु उन्होंने अनेकों विद्यालयों की स्थापना कर दी लेकिन पढ़ाने वाले अध्यापक नहीं मिलते थे क्योंकि अछूतों को कोई पढ़ाना नहीं चाहता था इसीलिए उन्होंने अपनी पत्नी को आदर्श शिक्षिका बनाया ताकि वह अछूतों को और दलितों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर सके उस समय दलितों के बच्चों को छिपाकर पढ़ाया जाता था और छिपाकर ही उनको उनके घर छोड़ा जाता था इससे काफी समस्याओं का समाधान हो गया
27 नवंबर 1890 को उन्होंने अपने सभी सगे संबंधियों से को अपने पास बुला कर कहा कि लगता है कि मेरा अंतिम समय नजदीक आ गया है अभी मेरा बेटा यशवंत बहुत छोटा है इसलिए इसको आप सभी के हवाले कर रहा हूं ऐसा कहते उनकी आंखों से आंसू आ गए और उनके गंभीर आंसुओं को देखकर सावित्रीबाई ने उनको ढाढस बधायां लेकिन इसी दौरान उन्होंने इस संसार से अलविदा कह दिया
संत कबीर
आज से 600 वर्ष पहले कबीर दास जी का जन्म बताया जाता है कबीर ना गरीब हैं और ना अमीर
कबीर हर इंसान के अंदर हैं बस उसे पहचानने की जरूरत है कुछ लोग कबीर को भगवान का अवतार मानते हैं कुछ फकीर मानते हैं कुछ भगवान राम का भक्त मानते हैं कुछ लोग निर्गुण मानते हैं कुछ सद्गुरु मानते हैं तो कुछ कवि मानते हैं सबके अपने-अपने विचार हैं
कुछ लोगों का कहना है कि विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से कबीर का जन्म हुआ था नीरू और नीमा नाम के दंपति जुलाहे इस बच्चे को अपने घर उठा लाए और उन्होंने ही इसकी पालना की इसलिए कुछ लोग इनको जुलाहा मानते हैं
कबीर लहरतार तालाब में कमल के फूल पर प्रकट हुए बताए जाते है कमल के फूल पर बाल स्वरूप में नीरू और नीमा को प्राप्त हुए बताए जाते हैं कबीर का पालन पोषण करने वाले हिंदू थे या मुसलमान, सनातनी या कोई अन्य इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है
कबीर ने पंडितों को भी निपुण कसाई कह डाला यह हिम्मत किस में हो सकती थी
कबीर मध्य काल के युग में पैदा हुए उस समय देश पर मुगलों का शासन था दिल्ली पर लगभग 200 सालों से मुसलमानों का राज चला आ रहा था इस्लाम खुद एक संगठित समाज था जो उस समय ब्राह्मण के बोलवाले व अन्य जातियों को चुनौती दे रहा था उस समय समाज में खूब उथल-पुथल मची हुई थी
हिंदू कहे राम हमारा, तूरक कहें रहिमाना l
आपस में लड़ मरत हैं ,मर्म ना काकू जाना ll
कहत कबीर सुनो भाई साधो, छाडि दियो ब्रह्म ज्ञाना l
कोई पियत राम रस प्याला, कोई रहिमाना ll
कविरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर l
ऐसे नहाने से क्या फायदा जिससे मन का मेल न धूल सके मछली तो सदा जल में ही पड़ी रहती है लेकिन फिर भी गंदी ही मानी जाती है लोग उसका सेवन धोने के बाद ही करते हैं यानी उसकी पवित्रता और शुद्धता पर शक करते हैं
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोई l
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ll
पत्थर पूजे हरि मिले ,तो मैं पूजू पहाड़ l
या ते तो चाकी भली, पीस खाए संसार ll
कंकड़ पत्थर जोड़कर, मस्जिद लई बनाय l
ता चढ़ी मुल्ला बाग दे, बहरा हुआ खुदाय ll
14 वी सदी में ऐसा बोलने बाले कबीर थे जो गुरु की महिमा का गुणगान करते थे उस समय कबीर की वाणी ने हड़कंप पैदा कर रखा था
स्वामी रामानंद के 12 वे शिष्य बताए जाते हैं
काशी में हम प्रकट हुए हैं रामानंद चिताए
जबकि दोनों की विचारधारा अलग है रामानंद जी कर्मकांड करने वाले हैं कबीर पूजा-पाठ को नहीं मानते हैं क्या राम सबका नहीं ? क्या राम मेरा नहीं ?
रामानंद सागर प्रतिदिन गंगा नदी पर स्नान करने जाते थे हैं कबीर दास जी सीढ़ियों पर लेट गए रामानंद जी का पैर कबीरदस जी से लग गया और पैर लगते ही उन्होंने राम-राम बोलना शुरु कर दिया रामानंद जीने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया और कहा कि तू जीत गया सारे ब्रह्मांड में राम है राम सबका है यह भेदभाव तो मनुष्य के बनाए हुए हैं
कबीर ने टीका लगाया जनेऊ धारण किया लोगों ने विरोध किया कबीर को मानने वालों की धारणा है कि पीर को गुरु माना तबीर ने अक्षर ज्ञान प्राप्त नहीं किया जो वहां डंके की चोट पर कहा बाहरी धन और आडंबर पर हमला किया
मैं बहरा आंखन की देखी ,तू करता कंगन की लेखीl
मैं कहता सुरधावन हारी, तू राखी उरसाईं रे ll
उन्होंने साफ-साफ शब्दों में धर्म और कर्मकांड से जुड़े आडंबर तथा ढकोसलो पर हमला किया मजहब की लड़ाई पर हमला किया कबीर सत्संग किया करते थे जिसमें दबे कुचले शामिल हुआ करते थे उन्होंने कहा कि जो दूसरों का दुख दर्द जानते हैं वही सच्चे पीर होते हैं
पीरा सोई पीर है ,जो जाने पर पीर l
जो परवीर ना जानहीं, शो काफिर वो पीर ll
आंख की पुतली से सुई की नोक और गुजरते कारवां को देखा जा सकता है सूरज और चांद के बीच में काफी अनगिनत हाथी और ऊंट भी गिने जा सकते हैं
अब तक के संघर्ष में ऐसा लगता है कि कबीर दलितों और बेसहारा की जुबान बने जाति धर्म को तोड़कर वह समाज सुधार की बात 15 मी शताब्दी से कर रहे थे
तुम कहत बामन, हम कहत शूद्र l
हम कहत लोहू, तुम कहत दूत ll
वह कट्टर पंथ के सच्चे आलोचक थे वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना की थी की
इरोड वेंकटनायकर रामास्वामी
जन्म- 17 सितंबर 1879, एरोड, तमिलनाडु
माता जी का नाम- चिन्ना थायानमल
पिताजी का नाम- बैंकटॉपया नायडू
पत्नी - नागम्में
मृत्यु - 24 दिसंबर 1973, वेल्लोर, तमिलनाडु
1916 में साउथ इंडियन लिबरेशन ऑफ एसोसिएशन की स्थापना की
1919 में मेंबर ऑफ कांग्रेस पार्टी
1922 में प्रेसिडेंट ऑफ मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति 1925 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी
1925 में आत्मसम्मान आंदोलन शुरू किया
1928 में अंग्रेजी जनरल रिपोर्ट का प्रकाशन किया 1929 में यूरोप रूस मलेशिया समेत कई देशों की यात्रा की
1933 में इनकी पत्नी नगमे का देहांत हो गया
1937 में मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्यमंत्री बने
1938 में हिंदी विरोधी आंदोलन किया जिसमें गिरफ्तार हुए
1939 में जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने
1948 में अपने से 40 साल छोटी लड़की से दूसरा विवाह किया
इरोड बैंकट नायकर रामास्वामी यानी ईवीएम रामास्वामी का जन्म तमिलनाडु में 17 सितंबर 1879 को हुआ था 1885 में इनका दाखिला पढ़ने लिखने के लिए करा दिया गया था और 19 वर्ष की उम्र में इनकी शादी करा दी गई थी 1933 में इनकी पत्नी का देहांत हो गया इन्होंने चौथी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की और 10 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने शिक्षा से अलविदा कह दिया
इनके पिता बड़े व्यापारी थे और परोपकार के कार्य करते रहते थे धार्मिक कार्यों में उनकी काफी रुचि थी इसलिए दान दक्षिणा भी देते रहते थे जिसकी वजह से क्षेत्र के लोग उनका काफी सम्मान करते थे पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने पिता के व्यापार में हाथ बटाना शुरू कर दिया लेकिन अपने पिता के विचारों से सहमत नहीं थे पेरियार को बचपन से ही ढकोसलाबाजी और अंधविश्वास पसंद नहीं था इसलिए वह मंदिर में पूजा करने के लिए भी नहीं जाते थे जबकि उनके घर आए दिन कोई न कोई अनुष्ठान होता रहता था वह अपने तर्कों से ब्राह्मणों को भी धर्म संकट में डाल देते थे लेकिन अभी बाल्यावस्था में थे इसलिए पिता के द्वारा किए जाने वाले धार्मिक कार्यों पर रोक भी नहीं लगा पा रहे थे पेरियार का धर्म विरुद्ध आचरण उनके पिता को खटकने लगा आपसी मतभेद होने लगे समाज के लोगों को उनके मतभेद दिखाई पड़ने लगे आपसी कहासुनी और विरोधाभास से उनके पिता का सम्मान समाज में कम होने लगा पिता की कहासुनी के बाद पेरियार ने पिता का घर छोड़ दिया और सन्यासियों के साथ सन्यासी बन गए इससे उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा इसलिए उन्होंने संन्यास भी छोड़ दिया और उन्हें अपने पिता के घर वापस लौट आए अब पेरियार को समझ आ गई थी कि अलग रहकर समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता है बल्कि मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के साथ सहयोग करके उनके विचारों को बदलने का प्रयास किया जा सकता है इसलिए पेरियार ने अपने विचारों में परिवर्तन किए बिना अपनी कार्य पद्धति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए कार्य पद्धति में परिवर्तन करने के बाद पेरियार लोकप्रिय समाज सेवी हो गए परिणाम स्वरूप छोटी-छोटी समस्याओं ने उनको अपनी संस्था में पद दे दिया समाज के लिए समर्पित भाव से कार्य करने लगे और उन्होंने 1919 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली यह महात्मा गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित हुए और 1920 में इन्होंने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया इस समय इन्होंने अपने परिवार व व्यापार का दायित्व अपने भाई कृष्णास्वामी को सौंप दिया अब पेरियार स्वामी कांग्रेश द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे इन्होंने नशा बंदी के लिए आंदोलन चलाएं इसलिए उन्होंने अपने बाग के 1000 ताड़ के पेड़ कटवा दिए लोगों की भावनाओं की कद्र करने हेतु वह उनकी कसौटी पर खरा उतरने के लिए आर्थिक हानि उठाना भी पसंद किया इन्होंने अछूतों के अधिकारों के लिए भी आंदोलन चलाया उसके लिए अपनी गिरफ्तारी भी दी मतभेद के कारण उन्होंने 1925 में कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और अपनी पार्टी बना ली इन्होंने अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ाई लड़ी और 1925 में कांग्रेसी परित्याग के बाद आत्मसम्मान आंदोलन की नींव रखी 1925 में इन्होंने जस्टिस पार्टी को ज्वाइन कर लिया और सर्वसम्मति से 1938 में उसके अध्यक्ष बन गए पेरियार का विचार था कि शुद्र तथा दलितों को हिंदू धर्म की मान्यताओं से मुक्ति दिलवाना है क्योंकि वह समझते थे कि हिंदुत्व एक बड़ा धोखा है मूर्खों की तरह हमें हिंदुत्व के साथ नहीं रहना चाहिए इससे पहले ही हमारा काफी नुकसान हो चुका है इसमें हमारी संभावनाओं को खतरे में डाल दिया है हमें ऐसा धर्म नहीं चाहिए जो हमें ऊंच-नीच में डालता हो हमारे बीच नफरत पैदा करता हो शत्रुता कराता हो आपस में प्यार को खत्म करता हो
मान्यवर काशीराम
काशीराम जी का जन्म 15 मार्च 1934 को खासपुर रोपड़ पंजाब में रैदास सिख परिवार में हुआ था इनकी माता का नाम किशनकौर और पिता का नाम हरि सिंह था इनके पिताजी अशिक्षित थे लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे इनके दो भाई और चार बहने थी जिनके नाम स्वर्णकौर कुलवंतकौर गुरचरणकौर दलबीरकौर और हरबंस सिंह थे इन्होंने सरकारी कॉलेज रोपड़ से बीएससी की थी जब काशीराम जी पैदा हुए थे उस समय भी दलितों को नफरत की दृष्टि से देखा जाता था इसीलिए इस वर्ण व्यवस्था से उद्वेलित होकर दलितों के उद्धार के लिए कार्य करना शुरू कर दिया 1958 में बीएससी करने के बाद डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन में सहायक वैज्ञानिक के पद पर आसीन हो गए थे समाज में दलितों पर हो रहे अत्याचार को देखकर उन्होंने 1965 में अपनी नौकरी को छोड़ दिया और दलितों की रक्षा के लिए कदम बढ़ा दिया तथा 1976 में बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लॉय फेडरेशन की स्थापना की उन्होंने दलितों के हितों के लिए अनेकों आंदोलन व पदयात्रा की इन्होंने 1984 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति का गठन किया और इसके तहत उन्होंने भारत सरकार और उसकी नीतियों का विरोध किया पूरे भारतवर्ष में संगठित रूप से कार्य करने के लिए इन्होंने राजनीतिक पार्टी बहुजन समाज पार्टी का गठन किया काशीराम जी ने शोषित समाज की चेतना को जागृत किया काशीराम जी ने बाबा साहब द्वारा लिखित जाति का विकास नामक पुस्तक को एक ही रात में बार-बार पढ़ा और पढ़ने के बाद उनका जीवन बदल गया और उन्होंने सब कुछ त्याग दिया तथा सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के लिए निकल गए उनकी मां ने उनको शादी करने के लिए कहा तब काशीराम जी ने कहा कि मैंने अपने आपको समाज को समर्पित कर दिया है इसलिए मैं शादी नहीं करूंगा उन्होंने कहा कि अब मेरा परिवार के साथ कोई घनिष्ठ रिश्ता नहीं है अब मैं बहुजन समाज का उत्थान करूंगा उन्होंने बहुजन बाद की फौज तैयार की जिसमें बहुजन ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय आदि की विस्तृत जानकारी दी और बताया कि 85 फ़ीसदी बहुजन समाज शोषित है उन्होंने गुरु घासीदास बिरसा मुंडा रामास्वामी पेरियार महात्मा ज्योतिबा फुले साहू जी महाराज बाबा साहब अंबेडकर को पढ़ा और उनके विचारों को पुनर्जीवित किया और उनके मिशन को भौगोलिक व सामाजिक विस्तार देने की योजना बनाई उन्होंने प्रशिक्षण देने का आयोजन किया और हजारों लोगों को मिशन से जोड़ लिया काशीराम जी का संगठन मजबूत होने लगा काशीराम जी राजसत्ता को मुख्य चाबी मानते थे इसलिए राजनीतिक भागीदारी चाहते थे इसलिए उन्होंने 6 दिसंबर उन्नीस सौ 78 को बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस पर बामसेफ की स्थापना की थी बामसेफ non-political नॉन रिलीजियस नॉन एजुकेशनल संगठन था उन्होंने कहा कि बामसेफ टीचर की भूमिका में काम करेगा बामसेफ ने पूरे देश में कुछ ही समय में मनुवाद के खिलाफ एक तूफान खड़ा कर दिया जाति धर्म के बारे में शोषित वंचित दलित समाज को छोड़ दिया और सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ जोड़कर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर दी 6 दिसंबर 1981 को ds4 की स्थापना की इसका पूरा नाम दलित शोषित समाज संघर्ष समिति था यह राजनीतिक पार्टी तो नहीं थी लेकिन गतिविधियां उसी प्रकार की थी 14 अप्रैल 1984 को इन्होंने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की इसका स्पष्ट उद्देश्य था राज्य सत्ता पर कब्जा करना लेकिन 2 साल के बाद ही गद्दारों ने गद्दारी कर दी और कांशीराम जी को बामसेफ से अलग कर दिया फिर काशीराम जी ने अपना चमत्कार दिखाया और बहुजन समाज पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाकर 3 जून 1995 को बहन मायावती को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बना दिया काशीराम जी के संरक्षण में मायावती तीन बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी और 2000 एक में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी 9 अक्टूबर को काशीराम जी का परिनिर्वाण हो गया अब काशीराम जी की अनुपस्थिति में मायावती ने 200 एक में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली लेकिन यह परिणाम काशीराम के त्याग और समर्पण का था उन्होंने इस मिशन को जीरो से शुरू किया था वह बहुजन समाज के लिए संवेदनशील रहे और मकसद प्राप्ति के लिए सार्थक प्रयास करते रहे इसीलिए अपने मुकाम को हासिल किया निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि कांशीराम जी समाज के आदर्श रहे और बहुजन समाज को पहचान दिलाने में सक्षम रहे वह बहुजन समाज के लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं उन्होंने बहुजन समाज को हुक्मरण समाज बना दिया काशीराम जी की उपलब्धियों का बखान नहीं किया जा सकता है वह वास्तव में ही महापुरुष थे उन्होंने बसपा सरकार मैं अपने महापुरुषों के अनेकों पत्थर लगवा दिए तकि उनके सहयोग को याद रखा जा सके अछूतों और दलितों के उद्धार के लिए उन्होंने अपने जीवन को समर्पित कर दिया उन्होंने 1991 में पहली बार इटावा से लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार पंजाब के होशियारपुर से 1996 में लोकसभा का चुनाव जीता था लेकिन 200 एक में उन्होंने मायावती को सार्वजनिक तौर पर अपना उत्तराधिकारी बना दिया काशीराम जी को मधुमेह और उक्त रक्तचाप की बीमारी थी इनको 1994 में दिल का दौरा पड़ा था 2003 में दिमाग का दौरा पड़ा था सेहत ठीक न रहने की वजह से 2004 में सामाजिक जीवन व राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया था और 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति रिवाज के साथ किया गया था काशीराम जी गरीब असहाय बेसहारा दलित मजदूर शोषित पीड़ित एवं चुनाव वंचितों के मसीहा थे उन्होंने सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के नारे को सार्थक किया उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर अपना सुख त्याग कर बहुजन की सेवा की जिंदगी भर अविवाहित रहकर दलित समाज के उत्थान के लिए काम किया कभी किसी प्रकार की लालसा नहीं रखी निस्वार्थ समाज के लिए रोजाना इंजीनियरिंग और मायावती को मुख्यमंत्री बना दिया काशीराम के एक नोट और एक वोट के नारे ने सभी धर्म जातियों को जोड़ दिया उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई जिसकी वजह से उनको सिक्कों से तोला जाने लगा इस पैसे का इस्तेमाल चुनावी प्रक्रिया में किया खुद राजनीति से दूर रहें और हजारों लोगों को राजनेता बना दिया उनकी नीतियों से कई लोग महान बन गए समाज में पूजे जाने लगे ऐसे प्रतिभाशाली कुशल नेतृत्व वाले व्यवहार कुशल नेता बहुत कम मिलते हैं
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