अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट ने एकलव्य इंस्टिट्यूट में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया - डॉ एमपी सिंह

24 जनवरी 2023 अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट ने एकलव्य इंस्टिट्यूट में राष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें 165 महिलाओं तथा बालिकाओं ने भाग लिया 

इस अवसर पर देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफेसर एमपी सिंह ने कहा कि 24 जनवरी 1966 को आयरन लेडी श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्रालय के द्वारा यह भारतवर्ष में 2008 से नियमित मनाया जा रहा है ताकि लड़कियों को उनके अधिकार और कर्तव्य के बारे में जागरूक किया जा सके 

डॉ एमपी सिंह ने कहा कि भारतीय समाज में लैंगिक असमानता एक बड़ी चुनौती है इसीलिए बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान चलाया जा रहा है तथा सुकन्या समृद्धि योजना भी चलाई जा रही है बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा भी दी जा रही है तथा आरक्षण का भी प्रावधान है फिर भी बेटी को बहुत समझा जाता है और बेटी के साथ भेदभाव किया जाता है जो कि एक सामाजिक बुराई है 

डॉ एमपी सिंह ने अधिकतर लोगों की मानसिकता के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ लोग बेटियों को पैदा होने से पहले कोख में ही मार देते हैं और उनकी परवरिश करने में भी भेदभाव करते हैं लड़कियों को अधिकतर सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं और लड़कों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं लड़कियों को रुखा सुखा भोजन दे देते हैं और लड़कों को दूध दही तथा पौष्टिक आहार देते हैं लेकिन फिर भी लड़के उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाते हैं जिस मुकाम को आज बेटियां हासिल कर रही हैं 

डॉ एमपी सिंह ने सभी को जागरूक करते हुए सचेत किया और कहा कि आज भौतिकवाद की दुनिया में बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं है बाल्यावस्था में घर में शोषण होता है कामकाज मैं भी शोषण होता है ना जाने लोग बेटियों के बारे में क्या-क्या संज्ञा विशेषण लगाते हैं हम आपकी चिंता करते हैं आपको घर से बाहर नहीं निकलना है आप को इससे बातें नहीं करनी है यह आपके लिए उचित नहीं है ऐसा कपड़ा आपको नहीं पहनना चाहिए आपको वहां नहीं जाना चाहिए सारे अंकुश बेटियों पर लगा देते हैं लेकिन बेटे इन सभी अंकुश से परे होते हैं 
कुछ लोग बाल विवाह कर देते हैं जिसकी वजह से कम उम्र में ही उनके पास बच्चों की जिम्मेदारी आ जाती है अधिक ना पढ़ लिख पाने की वजह से आजीवन उनको घरेलू हिंसा और प्रताड़ना को झेलना पड़ता है

 इस अवसर पर डॉ एमपी सिंह ने सावित्रीबाई फुले झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कल्पना चावला आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि यह भी तो बेटियां थी जिनके ऊपर आज देश और समाज को गर्व है अब तो महिलाएं राष्ट्रपति के पद को भी सुशोभित कर रही हैं तथा आईएएस आईपीएस वैज्ञानिक डॉक्टर इंजीनियर प्रोफेसर सिंगर खिलाड़ी पत्रकार साहित्यकार संगीतकार उद्योगपति शिल्पकार आदि बनकर देश का नाम रोशन कर रही हैं फिर भी महिलाओं को अपने अधिकार और सम्मान के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है इसके लिए कहीं ना कहीं हमारा समाज ही दोषी है 

डॉ एमपी सिंह ने आधुनिक माता पिता और समाज के लोगों की सोच का वर्णन करते हुए कहा कि कोई भी बहन बेटी यदि आधे अधूरे कपड़े पहन लेती है तो उसे बेशर्म कहा जाता है लेकिन इंसान यदि पहन लेता है तो वह मर्दानगी की निशानी कही जाती है यदि एक लड़का 10 लड़कियों के साथ डिंग मारता है तो वह कन्हैया कहलाता है यदि लड़की ऐसा कर दे तो वह बेहजा निर्लज्ज और वैश्या कहीं जाती है कहने का भाव यह है कि लड़का करे तो रासलीला और लड़की करे तो करैक्टर ढीला 
यह एक चिंता का विषय है इसके लिए मानसिकता मैं परिवर्तन लाना पड़ेगा जहां समाज में लड़का और लड़की को एक समान कहा जाता हो वहां एक समान समझना भी चाहिए है और एक जैसी सोच रखनी चाहिए तथा एक जैसा व्यवहार करना चाहिए

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