सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध तक की यात्रा पर दिल्ली में सेमिनार- डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट ने दिल्ली स्थित जैतपुर एक्सटेंशन के शिव विद्या निकेतन स्कूल मे  सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध की यात्रा पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जिसमें देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफेसर एमपी सिंह बतौर मुख्य अतिथि तथा मुख्य वक्ता रहे 

डॉ एमपी सिंह ने अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के कपिलवस्तु स्थित लुंबिनी नामक जगह पर इसी दिन हुआ था इसीलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं इनके पिता का नाम महाराज शुद्धोधन और इनकी माता का नाम माया देवी इनकी माता जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गई थी इसलिए इनका पालन-पोषण इनकी विमाता गोतमी देवी के द्वारा किया गया  

डॉ एमपी सिंह ने बताया कि जन्म के समय ज्योतिषियों ने कहा कि सिद्धार्थ या तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे या विरक्त होकर जनकल्याण करेंगे इस बात को सुनकर महाराज शुद्धोधन बहुत चिंतित हुए और उन्होंने सिद्धार्थ के लिए बहुत बड़ा भवन बनवा दिया जहां पर दुख रोग और मृत्यु फटक भी ना सके बड़े होने पर उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ करवा दिया दोनों के सहयोग से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया

 डॉ एमपी सिंह ने बताया कि एक दिन सिद्धार्थ ने अपने पिता से नगर देखने की इजाजत मांगी  उनके पिता ने अपनी राजदरबारी उसे ऐसी व्यवस्था करवा दी कि सिद्धार्थ को राज्य में कोई अप्रिय घटना नजर ना आए लेकिन होनी को कौन टाल सकता है घूमते समय पहले उन्हें एक वृद्ध असहाय व्यक्ति दिखाई दिया जो ठीक से चल फिर नहीं पा रहा था अगले दिन उन्हें एक रोगी दिखाई दिया तीसरे दिन चार व्यक्ति अंतिम संस्कार करने के लिए एक व्यक्ति को अर्थी में लेकर श्मशान घाट जा रहे थे और उनके पीछे अनेकों लोग रो रहे थे अगले दिन बाग में सन्यासी को टहलते देखा जिसके चेहरे पर विशेष तेज और उस था यह सब देखकर उनका संसार के सुखों से मोह भंग हो गया तथा ईश्वर द्वारा रचित माया को भी समझ गए और 27 वर्ष की उम्र में सत्य की खोज में रात के समय महल से चुपचाप निकलकर वैराग्य धारण कर लिया 

डॉ एमपी सिंह ने बताया कि 6 वर्ष तक बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या करने पर उनकी अवस्था जर्जर हो गई जिसकी वजह से वह खड़े होने में तथा चलने फिरने में असमर्थ हो गए थे लेकिन उन्होंने संकल्प ले लिया था कि यदि आत्मा का ज्ञान पैदा नहीं हुआ तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा अंत में विषम परिस्थितियों को जलते हुए ज्ञान प्राप्त हो गया और तत्कालीन प्रचलित मान्यताओं को तर्क के द्वारा दूर किया दुख निवारण के सारे व्यावहारिक उपाय बताएं उन्होंने कहा कि अज्ञान के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है घृणा को प्रेम से शत्रुता को मैत्री से हिंसा को करुणा से जीता जा सकता है 
उन्होंने बताया कि सारे मानव जीव जंतु प्रकृति प्रदत्त हैं और सभी समान हैं कोई भी मनुष्य जन्म से ऊंचा नीचा नहीं है सभी बराबर हैं 
उन्होंने मानव मात्र में भेद करने वाले सारे मान्यताओं को खत्म कर दिया
 उन्होंने कहा कि कोई भी बात इसलिए मत मानो कि मैंने कहा है या धर्म ग्रंथ में लिखा है या परंपरा चली आ रही है बल्कि उसे अपने तर्क की कसौटी पर कस कर देखो कि वह सही है तथा मानव हित में है तो मान लो अन्यथा छोड़ दो इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्य रश्मि भारती ने डॉ एमपी सिंह का स्वागत व धन्यवाद किया 

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