भ्रष्टाचार मुक्त शिक्षा ही स्वतंत्रता और समानता ला सकती है -डॉ एमपी सिंह
देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह अत्यंत गहन चिंतन के बाद इस लेख को जनहित और राष्ट्रहित में प्रकाशित कर रहे हैं
डॉ एमपी सिंह का कहना है की एक गरीब का बच्चा नंगे पैर रहकर फटे पुराने वस्त्र पहन कर भूखा रहकर मजदूरी करके अभावों में रहकर पढ़ना चाहता है लेकिन उसके लिए पढ़ाई के दरवाजे बंद हो जाते हैं उसका दाखिला नहीं हो पाता है यदि दाखिला हो जाता है तो उसे असमानता व गुलामी मैं रहना पड़ता है वह बहुत होशियार होता है लेकिन पक्षपात के चलते कमजोर और निकम्मा घोषित कर दिया जाता है उसका परीक्षा परिणाम बेहतर हो सकता है लेकिन अमीरों के शहजादे जो प्राइवेट स्कूलों में अध्ययन कर रहे होते हैं अनेकों अध्यापकों से ट्यूशन पढ़ रहे होते हैं और समय आने पर प्रश्न पत्र की उचित कीमत देकर प्रश्न पत्र को खरीद लेते हैं तथा परीक्षा ड्यूटी के दौरान सुपरवाइजर और सुप्रिडेंट को भी खरीद लेते हैं जिस से उन विद्यार्थियों के अंक सौ फ़ीसदी आ जाते हैं और संघर्ष करने वाला विद्यार्थी पीछे रह जाता है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण होनी चाहिए शिक्षा सभी के लिए निशुल्क होनी चाहिए और सरकारी अध्यापकों के द्वारा ही पढ़ाया जाना चाहिए सरकारी अध्यापकों के द्वारा ही परीक्षा लेनी चाहिए और प्रश्न पत्र की जांच भी सरकारी अध्यापकों के द्वारा ही करानी चाहिए क्योंकि प्राइवेट अध्यापकों की कोई अकाउंटेबिलिटी नहीं बनती है और किसी के साथ भी भेदभाव कर सकते हैं आजकल जाति का जहर तो बहुत ज्यादा व्याप्त हो रहा है अधिकतम कोचिंग सेंटर जो खुले हुए हैं वह बहुत बड़े उद्योगपतियों और सरमायदारो के हैं अधिकतम प्राइवेट स्कूल और कॉलेज पूंजीपतियों के हैं जिनकी सरकार में भागीदारी है इसलिए प्रश्न पत्र तैयार होने से पहले इन प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में वह प्रश्न पत्र पहुंच जाता है और लाखों के हिसाब से उसकी बिक्री हो जाती है जिसके बाद कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का परिणाम सत प्रतिशत आ जाता है जिसके बाद कोचिंग सेंटर प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रचार और प्रसार करते हैं कि हमारे यहां का परिणाम शत प्रतिशत रहा है जिसकी वजह से मासूम विद्यार्थी जिनको इस नीति के बारे में कुछ भी नहीं पता होता है वह वहां दाखिला लेने के लिए घर और खेत बेच देते हैं या माता-पिता अपने आप को किसी के यहां पर बंधुआ मजदूर घोषित कर देते हैं और बच्चे को पढ़ने लिखने के लिए इन कोचिंग सेंटरों में भेज देते हैं
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि आज शिक्षा इतनी महंगी हो चुकी है कि साधारण व्यक्ति अपने बच्चे को पढ़ा नहीं सकता है यदि वह सरकारी स्कूल में पढ़ाने भेजता है तो प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल नहीं कर पाता है क्योंकि शिक्षा मैं भ्रष्टाचार हो चुका है नौकरियां बिक रही हैं प्रतियोगी परीक्षाओं मैं पास कराने के नाम पर मोटी रकम ऐंठी जा रही है गरीब माता पिता मन मसोसकर रह रहे हैं इस दयनीय स्थिति को देखकर डॉ एमपी सिंह का मन अत्यंत विदीर्ण हो रहा है और दुखी मन से यही लिखा जा रहा है की शिक्षा में समानता और स्वतंत्रता लाने का सभी को प्रयास करना चाहिए हर देशवासी को एक ही करिकुलम पढ़ा कर परीक्षा लेनी चाहिए और परीक्षा का आकलन निष्पक्ष होना चाहिए जिस दिन प्रतिभा का सम्मान शुरू हो जाएगा उस दिन देश से भय और भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा अधिकारी और कर्मचारी समर्पित और ईमानदार मिलने लगेंगे
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि जब कोई भी बच्चा रिश्वत देकर नौकरी को प्राप्त करता है तो वेलफेयर करने की सोच नहीं होती है बल्कि उस पैसे को वसूलने की सोच होती है इसलिए वह कई बार अपने आप से भी समझौता नहीं कर पाता है इसके लिए हमें सिस्टम को बदलने की आवश्यकता है जब तक गलत तरीकों के माध्यम से सर्टिफिकेट और नौकरी प्राप्त करते रहेंगे तब तक कोई भी कार्य गुणवत्ता पूर्ण नहीं होगा और इंसानियत भी नजर नहीं आएगी
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