अमरनाथ गुफा के बाहर बादल फटने से 16 लोगों की मौत- डॉ एमपी सिंह

चीफ वार्डन सिविल डिफेंस व विषय विशेषज्ञ आपदा प्रबंधन डॉ एमपी सिंह ने संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि बरसात के दिनों में प्रतिवर्ष बादल पहाड़ों में कहीं ना कहीं फटते ही रहते हैं और अपार जन धन की हानि होती रहती है लेकिन फिर भी हम सतर्क नहीं होते हैं

 बादल क्यों फटते हैं बादल के फटने से क्या होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है इस पर प्रकाश डालते हुए डॉ एमपी सिंह ने कहा कि जब भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह एकत्रित हो जाते हैं तब उसमें समाहित पानी की बूंदों का भार इतना अधिक हो जाता है कि उसकी डेंसिटी बढ़ जाती है इस स्थिति में जब बादल हवा के साथ पहाड़ों से गुजरते हैं तो कई बार पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं जिसकी वजह से बादल फट जाते हैं और मूसलाधार बरसात होने लगती है यह बरसात इतनी तेज होती है कि इसके सामने किसी का भी टिक पाना संभव नहीं होता है इससे भूस्खलन होने लगता है तथा पहाड़ टूट कर सड़कों पर आ जाते हैं जिसकी वजह से वहां के लोग और उनकी संपत्ति या तो पानी के बहाव में बह जाती हैं या रास्ता अवरुद्ध होने पर जहां के तहां फस जाते हैं 

जम्मू कश्मीर में अमरनाथ गुफा के बाहर बादल फटने से होने वाले नुकसान पर डॉ एमपी सिंह ने शोक प्रकट किया है और इस लेख के माध्यम से परिवारी जनों को सांत्वना भेजी है तथा नई पीढ़ी को इससे बचने के उपाय भी प्रकाशित किए हैं
 बरसात के दिनों में पहाड़ी क्षेत्र के ढलानो पर नहीं रहना चाहिए
 मकानों की बनावट मजबूत होनी चाहिए
 पानी की निकासी ठीक होनी चाहिए
 प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए
 सघन वन व जंगलों को नहीं काटना चाहिए
 कच्चे पहाड़ों को तोड़कर पिकनिक प्लेस नहीं बनाने चाहिए
 पिछली घटनाओं से सीख लेनी चाहिए

 डॉ एमपी सिंह ने बताया कि
 2014 में कश्मीर घाटी में बादल फटने की घटना नहीं भूलाई जा सकती है इसमें 200 से अधिक लोग मर गए थे
 2015 में उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग लापता हो गए थे जिसमें अधिकतर तीर्थयात्री थे
 2010 में जम्मू कश्मीर के लेह लद्दाख में बादल फटने से एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 400 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे तथा 9000 से अधिक लोग इस घटना से प्रभावित हुए थे
 2016 में शिमला में बादल फटा था और
 2017 में पिथौरागढ़ जिले में बादल फटा था जिसमें काफी जनधन की हानि हुई थी 
उक्त उदाहरण इसलिए दिए गए हैं ताकि पिछले इतिहास की पुनरावृत्ति ना हो और हम अपनी जागरूकता का परिचय दें
 जागरूकता से ही प्राकृतिक आपदा से निपटा जा सकता है अन्यथा बादल फटने का कोई ठोस उपाय नहीं है बादल फटने पर प्रतिवर्ष तबाही मचती है लेकिन फिर भी हम नासमझ बन जाते हैं

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