बीते दिनों की यादें करके रोना आता है -डॉ एमपी सिंह
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के सारोल गांव में हुआ था और जब मैं 2 वर्ष का था पिता का देहावसान हो गया था मेरी अनपढ़ मां ने परवरिश करके बहुत बड़ा उपकार किया जिसके लिए मैं सदैव आभारी रहूंगा
मेरे जीवन परिचय के पहले 5 भाग प्रकाशित हो चुके हैं यह छठा भाग निम्न प्रकार है
पिछला जमाना याद कर आज मुझे रोना आता है कि किस स्थिति और परिस्थिति में मैंने अपना जीवन गुजारा उस समय बड़ा भाई पिता के समान माना जाता था और बड़े भाई और बहन के सामने कोई ऊंची आवाज में भी बात नहीं कर सकता था माता पिता के डांटने फटकारने और मारने पर कोई गर्दन ऊंची नहीं कर सकता था
जब मैं अबोधबालक था तब मां सीख देती थी कि सुबह 4:00 बजे उठकर कुआं पर स्नान करके मंदिर जाया करते हैं और जल से मंदिर की सफाई तथा देवी देवताओं को नहलाया करते हैं इसीलिए मैं गांव के सभी मंदिरों में पूजा करने के लिए एक बाल्टी में पानी लेकर एक लोटा लेकर जाया करता था तथा माता की आज्ञा का बखूबी से पालन किया करता था
माताजी कहती थी कि शाम को देवालय में जाकर आरती में शामिल होते हैं और वहां से भभूत लाकर अपने गले माथे पर लगाते हैं ताकि भूत प्रेत दूर रह सके और बाहर का ऊपरी साया ना पढ़ सके वह भी मैं बखूबी से निभाता था
इसी श्रद्धा भाव के साथ पूजा करता था कि किसी कारण से गरीबी दूर हो जाए दो वक्त की रोटी मिल जाए तन पर पहनने के लिए कपड़ा मिल जाए
उस समय भगवान और देवी देवताओं के बारे में ज्ञान नहीं था जैसा मां को पंडित पढ़ाते थे वैसा ही मां हमसे करवाती थी
मावस और पूर्णमासी जिनको अमावस्या और पूर्णिमा बोलते हैं को खीर पुरी बनती थी लेकिन हमें स्कूल भेज दिया जाता था और कहा जाता था कि जब तक पंडित जी भोजन नहीं करेंगे तब तक आपको खीर पूरी नहीं मिलेंगी स्कूल से आकर ही भोजन कर लेना और हम भूखे ही स्कूल पढ़ने चले जाते थे
साथियों ऐसा था पहला दौर लेकिन आज का दौर कैसा है आप समझ सकते हैं
आज मुझे वास्तविक ज्ञान पैदा हो गया है मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे तथा चर्च क्या होते हैं देवी और देवता किसे कहते हैं देवी और देवताओं की मान्यता क्या होती है भली-भति बोध हो गया है
अब मैं भ्रमित जिंदगी नहीं जी रहा हूं तथा वास्तविकता से सभी को अवगत करा रहा हूं जिसके लिए अनेकों बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मेरे लेख और वीडियो प्रकाशित हो चुके हैं
मेरा मानना है कि कर्म ही प्रधान होता है और लगातार सदकर्म करने से बुरा समय टल जाता है
मेरा मानना है कि पढ़ाई लिखाई पर हर माता-पिता को ज्यादा फोकस करना चाहिए और अधिक से अधिक बच्चों को पढ़ाना लिखना चाहिए तथा बचपन में ही सेवाभाव तथा संस्कार डाल देने चाहिए
पहले महापुरुष कहते थे कि घूरे की भी 12 साल में किस्मत बदल जाती है तो इंसान की किस्मत क्यों नहीं बदलेगी
घूरे का मतलब तो सभी समझते होंगे कि जो घर का कूड़ा करकट तथा गाय भैंस का गोबर होता है वह एक स्थान पर कहीं बाहर डाल दिया जाता है उसे घूरा कहते हैं
कुछ समय के बाद वही खाद बन जाता है जो निराई गुड़ाई और बुवाई के साथ खाद के रूप में खेतों में डाला जाता है जिससे जैविक खेती होती है जैविक खाद से पैदा किया हुआ अनाज स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है
लेकिन आज तो हम यूरिया के द्वारा उत्पादित वस्तुओं को खा पी रहे हैं जिससे अधिकतर लोग गलत मानसिकता के शिकार और रोगी हो चुके हैं और अहम और वहम में जी रहे हैं
आज मैं चीफ वार्डन सिविल डिफेंस व विषय विशेषज्ञ आपदा प्रबंधन ,करियर काउंसलर, मोटिवेशनल स्पीकर, एड्स कंट्रोल सोसायटी पंचकूला और आईएसबीटीआई से ऑथराइज मोटीवेटर, मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ से प्राथमिक सहायता और ग्रह परिचर्या का प्रशिक्षक, सैट जॉन एम्बुलेंस एसोसिएशन तथा रेड को सोसाइटी का आजीवन सदस्य, अखिल भारतीय मैथमेटिक्स टीचर एसोसिएशन का सदस्य, अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट का राष्ट्रीय अध्यक्ष, गऊ सेवा ट्रस्ट का राष्ट्रीय अध्यक्ष ,नेशनल ह्यूमन राइट ऑप्शन का राष्ट्रीय अध्यक्ष, दहेज सलाहकार बोर्ड का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, एंटी करप्शन फ्रंट का एग्जीक्यूटिव सदस्य हैं
आज मुझे शिक्षाविद, समाजशास्त्री, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा अर्थशास्त्री के नाम से भी लोग जानते हैं मेरा कहने का भाव है कि कुछ भी असंभव नहीं है यदि मन में विश्वास है और कार्य करने की चेष्टा है और लगन के साथ ईमानदारी से कार्य करते हैं तो सब कुछ संभव है
जहां चाह वहां राह सार्थक हो जाता है इसलिए घबराएं नहीं हिम्मत ना हारे और आगे बढ़ते रहें अवश्य मंजिल मिल ही जाएगी अभी मुझे मेरी मंजिल प्राप्त नहीं हुई है मंजिल प्राप्ति के लिए अभी मैं कार्य कर रहा हूं और उम्मीद है कि इच्छा पूरी हो ही जाएगी
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