चलो गांव की तरफ अपने बचपन की झलक दिखाते हैं कैसे मनाते थे भारतीय संस्कृति के पांच पर्व यानी धनतेरस रूप चौदस दीपावली गोवर्धन पूजा और भैया दूज को- डॉ एमपी सिंह
देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद समाजशास्त्री दार्शनिक प्रोफ़ेसर एमपी सिंह आप सभी को 60 -70 के दशक में मनाए जाने वाली दीपावली के बारे में बताने जा रहे हैं
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि महीनों पहले घर की साफ सफाई मैं अधिकतर लोग जुट जाते थे और चूने के कनस्तर में थोड़ा नील डालकर सफेदी करके घरों को चमकाते थे सफाई के दौरान कुछ खोई हुई चीजें और दबी चीजें मिल जाया करती थी तब अति प्रसन्नता का बोध होता था जब माता-पिता को वह चीज देते थे तो माता-पिता दस्सी पंजी इनाम के तौर पर दे दिया करते थे
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि सफाई करते समय जो कबाड़ घर में से निकलता था उसे कबाडिया को बेचकर कुछ पैसे कमा लिया करते थे और उससे जो अठन्नी चवन्नी मिलती थी उसी से पटाखे आदि ले आया करते थे
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि उस समय अपने पास पैसे तो होते नहीं थे लेकिन फिर भी बाजार जाकर बाजार की रौनक और सजावट को देखते थे बाजार के नारे सड़क पर रखी हुई चीजों को हाथ में उठाकर देखते थे और कीमत पूछते थे तथा ज्ञान प्राप्त करते थे और सीख लेते थे और उसी तर्ज पर घरों में कंडिया बनाकर छत से लटका देते थे या कुछ समय के लिए स्वयं ही इलेक्ट्रीशियन बन जाते थे और बिजली का झालर बनाकर टांग देते थे कुछ में मास्टर बल्ब लगा देते थे जिससे चारों तरफ रोशनी ही रोशनी हो जाती थी आस पड़ोस के सभी भाई बहन होड़ में लग जाते थे कौन अच्छा बनाएगा किसका घर अच्छा लगेगा लेकिन सभी प्यार और मोहब्बत से रहते थे
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि उस समय मुर्गा छाप पटाखे चला करते थे और बहुत सस्ते आते थे जिनको लाकर दो-तीन दिन तक छत में खूब धूप में सुखाते थे धनतेरस के दिन अधिकतर महिलाएं कटोरदान खरीदती थी और दीपावली वाले दिन प्रसाद की थाली लेकर पड़ोस में देने जाते थे जिसमें खील बताशे और हाथी घोड़े होते थे गोवर्धन पूजा के दिन सब्जी मिलाकर अन्नकूट बनाते थे और सभी पड़ोसियों के साथ मिलकर गोवर्धन पूजा करते थे भैया दूज के दिन अपनी बहनों से टीका लगवाकर आशीर्वाद लेते थे
फिर त्योहार निकलने के बाद बुझे हुए दीपक ओं को इकट्ठा करते थे और अगले वर्ष के लिए किसी आरे में रख देते थे तथा बम पटाखे चलाने से जो गंध फेलती थी उसे झाड़ू लगाकर साफ कर देते थे पूरी गली की सफाई करने में और भी अच्छा आनंद आता था पहले साफ सफाई पर बेहद ध्यान दिया जाता था उसी आधार पर बुजुर्गों का आशीर्वाद भी मिलता था
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि हमें अपने बुजुर्गों को समय देकर एकाकीपन मिटाकर दिवाली मनानी चाहिए तथा बड़े बूढ़े दादा दादी और मां बाप के साथ मिलकर बैठकर दीपावली मनानी चाहिए लेकिन आज अलग आपक हो गया है मां बाप दादा दादी कहीं पड़े हैं किसी को उनका ध्यान नहीं है और अधिकतर युवा बच्चे अपने बाल बच्चों में मस्त होकर त्यौहार मना रहे हैं जो कि उचित नहीं है
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि दादा दादी और माता-पिता की गोद शिक्षा सभ्यता और संस्कार की पाठशाला होती है इसलिए उनकी तवज्जो करनी चाहिए उस समय पर अधिकतर दादा दादी पुराने किस्से सुना कर लोटपोट कर देते थे और शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से ज्ञानवान गुणवान शीलवान और तेजवान बना देते थे इसलिए हमें अपने बुजुर्गों का ख्याल रखते हुए दीपावली को मनाना चाहिए
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