दुखद घटना है लेकिन विचारणीय- डॉ एमपी सिंह

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ एमपी सिंह ने सच्ची घटना का जिक्र करते हुए लोगों को प्रेरित करने का काम किया है डॉ एमपी सिंह राजा गार्डन के 731 मकान नंबर में रहते हैं उनके सामने वाली रो मे एक धोबी का मकान है जिसने दो शादी की थी पहली से एक लड़का है और दूसरे से भी एक लड़का है पहली से जो लड़का है वह दिव्यांग है लेकिन टेलर मास्टर का कार्य करके अपनी ठीक से गुजर बसर कर रहा है जिसके दो बच्चे हैं एक बीटेक कर रहा है और दूसरी बच्ची एवीएन स्कूल सेक्टर 19 में पढ़ रही है दूसरी से जो बच्चा है वह नशे का आदी हो गया है इसलिए कुछ कार्य नहीं करता है उसकी पत्नी अपार्टमेंट में प्रेस का कार्य करके अपने बच्चों का भरण पोषण कर रही है उसके तीन बच्चे हैं दो बड़ी बेटियां और एक बेटा जोकि दयानंद स्कूल सेक्टर 16 में पढ़ रहे हैं 
दूसरी पत्नी का नाम पुष्पा था जिसकी आज कैंसर के कारण मृत्यु हो गई है वह मेरे पास पिछली 15 सालों में अपनी विशिष्ट कामों के लिए चार बार आई थी एक बार बच्चे का दाखिला कराने के लिए फोन करवाया था एक बार फीस माफी के लिए फोन करवाया था एक बार घरेलू बिबाद के समझौते के लिए सलाह लेकर और अंतिम बार मंदिर के विवाद मे पंडित को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए मेरे पास आई थी वह मेरा सम्मान करती थी मेरे सामने ज्यादा नहीं बोलती थी लेकिन वह अपने आपको सबसे सुंदरी समझते थी और उन्होंने भजन कीर्तन के लिए महिला मंडली जी बना रखी थी राजा गार्डन मैं स्थित मंदिर का नेतृत्व भी कर रही थी अपने समय में किसी से भी लड़ जाती थी लेकिन पिछले 6 महीने से कैंसर के कारण घर से बाहर भी नहीं निकल पाई बिना उपचार के बहुत ही दुबली पतली जर्जर अवस्था में हो गई बोलने में असमर्थ थी क्योंकि मुंह का कैंसर था 
दोनों बच्चों में से कोई उसकी देखभाल करने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि पति के मरने के बाद  उसने दोनों बच्चों से भी तालमेल बनाकर नहीं रखा था अपना कमाना और अपना खाना रखा था स्वयं भी फ्लैट में कपड़े प्रेस करके अच्छे तरीके से गुजर बसर कर रही थी लेकिन विधाता की रचना का कुछ पता नहीं है कि कब क्या हो जाए विधाता ने उनकी आवाज ही छीन ली जिस आवाज के कारण गली मोहल्ले में उसकी हिटलर शाही चलती थी 
डॉ एमपी सिंह ने अपनी चिंता दर्शाते हुए कहां है कि माता-पिता कितने लाड प्यार से अपने बच्चों को पालते हैं पढ़ाते दिखाते हैं उनको कामयाब बनाते हैं उनको जीना सिखाते हैं उनके लिए किसी से लड़ जाते हैं सभी बुराई भलाई को अपने सिर पर ले लेते हैं यही सोचते हैं कि बुढ़ापे का सहारा बनेंगे लेकिन होता इसके उलट है जब इंसान बुजर्ग हो जाता है ना वह चल पाता है ना वह बोल पाता है ना उसके पास पैसा होता है ना उसके पास कोई देखने वाला आता है ऐसी स्थिति में वह बेमौत मर जाता है 
साथियों यह बहुत दुख का कारण है जिस समय पर समझने वालों की जरूरत होती है उस समय समझने वाले दूर दूर हो जाते हैं अपनी जमा पूंजी भी काम नहीं आती है क्योंकि बैंक से पैसे निकालने के लिए भी बैंक जाना पड़ता है फॉर्म भरना पड़ता है रिक्शा करना पड़ता है लेकिन यह सब कुछ तो हो ही नहीं पाता अस्पताल भी नहीं जाया जाता कुछ खाने को दिल करता है तो उसे भी नहीं खरीद सकते फिर कैसे जीवित रह पाएं क्या यह विचारणीय और चिंतनीय प्रश्न नहीं है यह किसी के साथ भी घटित हो सकता है हम से पहले भी अनेकों के साथ यह घटना घटी है इसलिए मेरा सभी से निवेदन है की आस पड़ोस में यदि ऐसी स्थिति किसी की है तो उसका सुख दुख बांट लेना जीवन सफल हो जाएगा

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